लालदासी संप्रदाय के प्रवर्तक/ संस्थापक संत लालदास जी है जिनका जन्म धौलीदूब गांव अलवर, राजस्थान में 1540 ईस्वी में हुआ। ये मेवात क्षेत्र में मध्यकाल के धार्मिक पुनर्जागरण करने वाले प्रसिद्ध संतो में से एक है।
संत लालदास के नाम पर ही इस संप्रदाय का नाम लालदासी संप्रदाय पड़ा जिसके बाद इन्हें मध्यकालीन मेवात का प्रसिद्ध संत भी कहा जाने लगा।
![]() |
संत लालदास जी |
लालदास जी और लालदासी संप्रदाय के बारे में मुझे तथ्य
- माता पिता:- लालदास जी के पिता का नाम चांदमल और माता का नाम समदा था। लालदास जी की पत्नी का नाम मोगरी था और इनके दो संतान थी बेटे का नाम पहाड़ा और बेटी का नाम सरूपा था।
- पत्नी और संतान:- लालदास जी की पत्नी का नाम मोगरी था और इनके दो संतान थी बेटे का नाम पहाड़ा और बेटी का नाम सरूपा था। लालदास जी के परलोक गमन के बाद इनके पुत्र और पुत्री दोनों ने अपना जीवन भक्ति में लीन होकर गुजारा।
- दीक्षा और गुरु:- लालदास ने तिजारा, अलवर के संत गद्दन चिश्ती से दीक्षा ली और वहीं उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई।
- प्रमुख गद्दी/पीठ/धाम:- लालदास जी का देहांत भरतपुर जिले के नंगला जहाज में 1648 ईस्वी में हुआ जहां वर्तमान में इस संप्रदाय की प्रमुख गद्दी है।
- समाधि:- संत लालदास जी की समाधि शेरपुर, अलवर में है।
- दीक्षा लेने की प्रमुख परंपरा:- इस संप्रदाय से जुड़ने वाले शिष्यों को मुंह काला करके गधे पर उल्टा बिठाया जाता है और फिर गांव में घुमाया जाता है ताकि उसका अभिमान समाप्त हो सके।
- परंपरा:- इस संप्रदाय के लोग मेव जाति की कन्या से विवाह करना पसंद करते हैं।
लालदास जी की प्रसिद्ध भविष्यवाणी
शाहजहां का प्रिय पुत्र दाराशिकोह जब संत लालदास से मिलने आया तब उन्होंने उससे कहा कि दिल्ली के तख्त पर वही बैठेगा जो अपने भाइयों की हत्या करेगा।
उनकी यह भविष्यवाणी सच की औरंगजेब ने जब उसने अपने भाइयों दारा शिकोह, शुजा और मुराद को मारकर दिल्ली की गद्दी हासिल की।
लालदास जी के उपदेश हमें कहां मिलते है?
जन्म से ही दिखने लगे थे इनके चमत्कार
कहा जाता है कि जब संत लालदास का जन्म हुआ तब ही इन्होंने अपनी माता से बात की उसके बाद से ही उनके माता पिता भी इन्हें अवतार समझने लगे थे।
गरीबी में निकला था शुरुआती जीवन
लालदास जी के माता पिता बहुत गरीब थे जिसके कारण बचपन में ही वे लकड़हारे बन गए और वे अपने गांव से लड़कियां काटते और अलवर शहर में बेचने जाया करते।
हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए ही पूजनीय थे लालदास जी
मेव (मुसलमान) जाति में जन्मे संत लालदास जी ने अपना जीवन छुआछूत और भेदभाव मिटाने के लिए समर्पित किया इसलिए उन्हें जितना हिन्दू पूजते है मुस्लिम भी उन्हें पीर मानते है।
लालदासी संप्रदाय की पांच कुराहें:-
- चोरी करना: यानि हमें कभी भी चोरी नहीं करनी चाहिए।
- परनारी आशक्ति: यानि हमें कभी भी दूसरे की स्त्री से प्रेम नहीं करना चाहिए।
- बुरा सोचना: यानि हमें कभी सपने में भी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए।
- ब्याज लेना: यानि किसी को पैसे उधार दे देने चाहिए लेकिन कभी भी ब्याज नहीं लेना चाहिए।
- पर स्त्री गमन: यानि पराई औरत के पास कभी नहीं जाना चाहिए।
लालदासी संप्रदाय की विचारधाराएं
- इन्होंने संसार यानि इस दुनिया को रात्रि के संसार की भांति माना है।
- बाह्यडम्बर का त्याग कर परमात्मा से लौ लगाने की बात यह संप्रदाय करता है।
- ये लोग निर्गुण राम की भक्ति करते है मूर्ति पूजा कम ही करते है और यह निर्गुण भक्ति धारा का संप्रदाय है।
- इंसान को अपना व्यवहार मृदुल रखना चाहिए।
- सभी व्यक्तियों को कुसंगती से बचना चाहिए और गुरु के आदेशों का पालन करना चाहिए।
- राम नाम स्मरण ही संसार से पार लगा सकता है इसमें हमेशा मुनाफे का सौदा होता है घाटे का नहीं।
लालदास जी की गद्दी पर बैठने वाले महंत
लालदास जी की मृत्यु के बाद इस परंपरा को शुरू किया गया और जब से लेकर अबतक उनकी गद्दी पर 12 महंत बैठ चुके है जिनके नाम निम्नलिखित है।
- लालदास
- बेगादास
- मारूदास
- निहालचंद
- हरिदास
- ठाकुरदास
- छानदास
- मलूकदास
- चंदनदास
- बालकदास
- गरीबदास
- धर्मदास
यह भी पढ़ें
- राजस्थान सूचना आयोग के अध्यक्षों की लिस्ट (2006 से 2025 तक सभी की)
- राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा 14 सितंबर 2025 को दूसरी पारी की उत्तर कुंजी
- राजस्थान में कौनसा विभाग विभिन्न राज्य सेवाओं में भर्ती के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होता है?
- आलम जी के बारे में पूरी जानकारी - राजस्थान के लोक देवता
- गूदड़ संप्रदाय - राजस्थान के प्रमुख संप्रदाय