आलम जी राजस्थान के मारवाड़ के एक प्रसिद्ध लोक देवता रहे जिनका मूल नाम जैतमलोत राठौर था।
आलम जी प्रसिद्ध सिद्ध मल्लिनाथ जी के छोटे भाई और सिवाणा के सामंत थे बाद में आलम जी के बड़े बेटे हापा सिवाना के सामंत बने।
इनके छोटे बेटे खींवकरण जी ने राठधरा के परमार शासक को हराकर राठधरा पर अपना शासन स्थापित कर लिया था।
Note:- सिद्धपुरूष रावल मल्लिनाथ जी, भक्त रानी रूपांदे और कवि ईशरदास आलिम जी से जुड़े हुए हैं।
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| आलम जी लोक देवता | 
आलम जी का मंदिर
आलम जी का मंदिर बाड़मेर के गुढ़ामलानी से तीन किलोमीटर दूर धोरीमन्ना के पास आलमपुर गांव ने स्थित है।
इनके स्थान या धाम/थान को आलम जी का धोरा कहा जाता है जहां पहले एक चबूतरा था लेकिन बाद ने भू भारती नाम के एक आदमी ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया।
आलम जी का थान या मंदिर जिस टीले पर बना हुआ है।
घोड़ों का तीर्थ स्थल
आलम जी के धोरा (धोरीमन्ना, बाड़मेर) को घोड़ों का तीर्थ स्थल कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि यहां आसपास के जो भी घोड़ा पालने वाले होते है वे ब्यावत के समय अपनी घोड़ी को यही के आते है ताकि आलम जी के सामने घोड़ी अपने बच्चे दे जिससे उनकी नस्ल अच्छी हो जाती है।
आलम जी के चमत्कार
आलम जी बाड़मेर क्षेत्र के बिश्नोई, जाट, राजपूत और अन्य जातियों में भी काफी ज्यादा प्रसिद्ध है।
राजपूत थे और राजा भी थे तो उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों को बचाने के लिए कई लड़ाईयां लड़ी।
जो भी इनकी बात सुनता भक्ति में डूब जाता भगवान का भक्त बन जाता और सदाचार का मार्ग अपना लेता था।
लोककथाओं के अनुसार इन्होंने कई डाकुओं, चोर और लुटेरों का जीवन पलट दिया और हमेशा गरीबों और अपाहिजों की सेवा में लगे रहे।
पानी की कमी से जूझ रहा रेगिस्तान और खारे पानी की समस्या ऊपर से लेकिन आलम जी के चमत्कारों में एक ये भी आता है कि आलमपुर के आसपास वाले क्षेत्र में पानी भी खूब है और पानी मीठा है।
आलम जी मेला
आलम जी का मेला धोरीमन्ना, बाड़मेर में भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को लगता है।
इस मेले में पुरुष सफेद कपड़े और महिलाएं लाल रंग के कपड़े पहनकर आती है इसलिए यह रेड एंड व्हाइट नाम से भी काफी प्रसिद्ध है।
यहां पर पहले पशु मेला लगता है जिसमें घोड़े, ऊंट, बकरी, भेड़ों के साथ अन्य मवेशियों की खरीद फरोख्त की जाती है।
