संसार में प्रत्येक कालखंड में ऐसे व्यक्तियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने कार्यों से समाज को एक नई राह दिखाई है। पीछे के पृष्ठों में हम ऐसे बहुत से व्यक्तियों के बारे में पढ़ चुके हैं, यहां पर हम कुछ और व्यक्तित्वों के बारे में अध्ययन करेंगे-
निहालचंद
किशनगढ़ चित्रकला शैली को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाने का श्रेय निहालचंद को ही है। यह किशनगढ़ के शासक सावंतसिंह के दरबार में था। इसने सावंतसिंह एवं उसकी प्रेयसी बनी-ठनी को राधाकृष्ण के रूप में चित्रित किया। बनी-ठनी का चित्र भारतीय 'मोनालिसा' कहा जाता है।
पन्नाधाय
हीरा पन्ना मोकला, खोद्या खान पहाड़। असली पन्ना तो जणै, माटी धर मेवाड़ ।।
स्वामीभक्ति, त्याग व बलिदान की मिसाल पन्ना धाय का जन्म चित्तौड़ के निकट पांडोली गांव में हांकला गुर्जर के घर में हुआ। पन्ना का विवाह महाराणा सांगा (1509-28 ई.) की सेना में नियुक्त सूरजमल के साथ हुआ। पन्ना के पुत्र चंदन के जन्म के कुछ दिनों बाद ही मेवाड़ की महारानी कर्णावती ने राजकुमार उदयसिंह को जन्म दिया। तत्कालीन परम्पराओं के अनुसार पन्ना को राजकुमार उदयसिंह की धाय नियुक्त किया गया। मेवाड़ के एक सामन्त बनवीर ने 1535 ई. में महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर युवराज उदयसिंह की हत्या का भी प्रयास किया। पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह की जगह लिटाकर बनवीर की तलवार का शिकार होने दिया और उदयसिंह को किले से बाहर भेजकर उसकी प्राण रक्षा की। मेवाड़ के इतिहास में पन्नाधाय का त्याग एक अविस्मरणीय घटना है।
गोरां धाय
मेवाड़ के इतिहास में जो महत्व पन्ना धाय को प्राप्त है, वही महत्व मारवाड़ में गोरां धाय को प्राप्त है। वीरांगना गोरां धाय का जन्म 4 जून, 1646 को एक माली परिवार में रतनोजी टाक व माता रूपा के घर जोधपुर में हुआ। इनका विवाह मण्डोर के मनोहर गोपी भलावत के साथ हुआ था। 1678 में जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह की जमरूद में मृत्यु हो जाने के बाद उनके सरदारों ने महाराजा के परिवार को सुरक्षित रूप से जोधपुर ले जाना चाहा। मार्ग में महाराजा जसवंतसिंह की रानी ने राजकुमार अजीतसिंह को जन्म दिया। यह खबर मिलने पर औरंगजेब ने जसवंतसिंह के परिवार को दिल्ली बुला लिया। औरंगजेब के इरादे ठीक न जानकर वीर दुर्गादास ने महाराजा के उत्तराधिकारी राजकुमार अजीतसिंह को बचाने की युक्ति सोची। वीर दुर्गादास एवं मारवाड़ के अन्य वफादार सरदारों ने गोरां धाय को एक साधारण सफाईकर्मी का स्वांग रचाकर राजकुमार को शाही पहरे से निकालने की योजना बनाई। वह अपने पुत्र को अजीतसिंह के स्थान पर रखकर राजकुमार को टोकरे में सुरक्षित बाहर ले आई। राजकुमार को गोरां धाय ने मुकनदास खींची, जो कि सपेरे के भेष में था, को सुपुर्द कर दिया। इस प्रकार गोरां धाय ने जोधपुर राज्य के उत्तराधिकारी की जान बचाई। धन्य है, गोरां धाय।
गोरां धाय के अपूर्व त्याग को जोधपुर राज्य के राष्ट्रीय गीत धूसां में गाया जाता है। उसकी स्मृति में जोधपुर में छः खम्भों से युक्त छतरी का निर्माण 1711 ई. में करवाया गया। जोधपुर में गोरां धाय नाम से बावड़ी भी है।
गवरी बाई
डूंगरपुर के नागर ब्राह्मण परिवार में जन्मी कृष्ण भक्त कवयित्री गवरी बाई को 'वागड़ की मीरा' भी कहा जाता है। डूंगरपुर महारावल शिवसिंह ने गवरीबाई के लिए 1829 में बालमुकुन्द मंदिर का निर्माण करवाया ।
दुर्गादास राठौड़
स्वामीभक्त वीर शिरोमणि दुर्गादास महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री आसकरण के पुत्र थे। इनका जन्म 13 अगस्त, 1638 को मारवाड़ के सालवा गाँव में हुआ। ये जसवंतसिंह की सेना में रहे। महाराजा की मृत्यु के बाद उनकी रानियों तथा खालसा हुए जोधपुर के उत्तराधिकारी अजीतसिंह की रक्षा के लिए मुगल सम्राट औरंगजेब से उसकी मृत्यु-पर्यन्त (1707 ई.) राठौड़-सिसोदिया संघ का निर्माण कर संघर्ष किया। शहजादा अकबर को औरंगजेब के विरुद्ध सहायता दी तथा उसके पुत्र-पुत्री (बुलन्द अख्तर व सफीयतुनिस्सा) को इस्लोमोचित शिक्षा देकर मित्र धर्म निभाया एवं सहिष्णुता का परिचय दिया। अंत में महाराजा अजीतसिंह से अनबन होने पर सकुटुम्ब मेवाड़ चले आये और अपने स्वावलम्बी होने का परिचय दिया। दुर्गादास की मृत्यु उज्जैन में 22 नवम्बर, 1718 में हुई। उनकी वीरता एवं साहस के गुणगान में मारवाड़ में यह उक्ति प्रचलित है 'मायड़ ऐसा पूत जण जैसा दुर्गादास' ।
दुरसा आढ़ा
अकबर के समकालीन दुरसा आढ़ा ने महाराणा प्रताप एवं राव चन्द्रसेन के देश-प्रेम की भावना का यशोगान किया है। विरुद्ध छहत्तरी (सर्वाधिक प्रसिद्ध), किरतार बावनी, वीरम देव सोलंकी रा दूहा आदि इनकी रचनाएँ हैं।
दयालदास
बीकानेर रै राठौडां री ख्यात के रचनाकार दयालदास का जन्म 1798 ई. में बीकानेर के कुड़ीया नामक गाँव में हुआ। दयालदास री ख्यात की हस्तलिखित प्रति में राठौड़ों की उत्पत्ति से लेकर महाराजा सरदारसिंह के राज्यारोहण (1851 ई.) तक का इतिहास लिखा गया है। यह ख्यात बीकानेर राजवंश का विस्तृत विवरण जानने, मुगल-मराठों के राठौड़ों से सम्बन्ध जानने, फरमान, निशान आदि के राजस्थानी में अनुवाद तथा बीकानेर की प्रशासनिक व्यवस्था को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
कविराज श्यामलदास
मेवाड़ के महाराणा शम्भूसिंह एवं उनके पुत्र महाराणा सज्जन सिंह के दरबारी कवि कविराज श्यामलदास का जन्म 1836 ई. में धोंकलिया (भीलवाड़ा) में हुआ। मेवाड़ महाराणा शम्भूसिंह के आदेश पर इन्होंने मेवाड़ राज्य का इतिहास लिखना शुरू किया, जो वीर विनोद नामक ग्रन्थ में संकलित है। ब्रिटिश भारत सरकार ने इनको केसर-ए-हिंद की उपाधि से तथा महाराणा मेवाड़ ने इनको कविराजा की उपाधि से विभूषित किया।
गौरीशंकर हीराचन्द ओझा
राजस्थान के इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का जन्म 1863 ई. में रोहिड़ा (सिरोही) में हुआ था। प्राचीन लिपि का अच्छा ज्ञान होने के कारण इन्होंने भारतीय प्राचीन लिपिमाला नामक ग्रंथ की रचना की। अंग्रेजों ने इन्हें महामहोपाध्याय एवं रायबहादुर की उपाधि प्रदान की। इन्होंने राजस्थान की कई रियासतों का इतिहास लिखकर उसे समृद्ध बनाया।
बावजी चतुरसिंह
मेवाड़ राजघराने से संबंधित लोक संत चतुरसिंह का जन्म 1879 में मेवाड़ के करजाली गांव में हुआ। विवाह के कुछ समय बाद ही विधुर हो जाने पर इन्होंने स्वयं को धार्मिक कार्यों एवं समाज सेवा में लगा दिया। उदयपुर के पास सुखेर गांव में एक झौपड़ी में योगाभ्यास, चिंतन एवं जनोपयोगी साहित्य की रचना करते हुए जीवन व्यतीत किया। वे संस्कृत एवं राजस्थानी भाषा के अच्छे जानकार थे। भगवद्गीता की गंगाजली टीका, परमार्थ विचार, योगसूत्र की टीका, सांख्य तत्व की समाज टीका, मानव मित्र रा चरित्र, शेष चरित्र, अलख पचीसी, अनुभव प्रकाश, चतुर प्रकाश, चतुर चिंतामणि, समाज बत्तीसी आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं। अपनी रचनाओं के माध्यम से जनजागरण का प्रयास करते हुए 1929 में चतुरसिंह की मृत्यु हो गई। चतुरसिंह ने अच्छे और बुरे लोगों के सम्बन्ध में अपने प्रतीकों के माध्यम से समझाते हुए लिखा -