राजस्थान राज्य से जुड़ी सरकारी नौकरियों की सभी खबरों और उनसे जुड़े स्टडी मटेरियल के लिए आप नीचे दिए लिंक से हमारा टेलीग्राम चैनल और वॉट्सएप चैनल जरूर ज्वाइन करें👇👇👇

टेलीग्राम चैनल लिंक

व्हाट्सएप चैनल लिंक

Search Suggest

राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थल

राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थल विस्तार से - राजस्थान का इतिहास और संस्कृति कक्षा 10वीं की किताब से

पर्यटन आज विश्व के सबसे बड़े उद्योगों में स्थान बना चुका हैं। राजस्थान भी पर्यटन स्थलों की दृष्टि से एक सम्पन्न राज्य है, जहाँ हर वर्ष लाखों सैलानी आते हैं। आंकड़े बताते हैं, कि भारत आने वाला हर तीसरा पर्यटक राजस्थान आता है। राजस्थान में पर्यटन विभाग की स्थापना 1956 ई. में की गई और 1989 ई. में इसे उद्योग का दर्जा दिया गया।

आज प्रत्येक देश पर्यटन से विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहता है और इस हेतु प्रचार-प्रसार भी कर रहा है। राजस्थान सरकार भी इस दिशा में सराहनीय प्रयास कर रही है। राजस्थान को पर्यटन की दृष्टि से दस सर्किटों में बांटा जाना इसी प्रयास का परिणाम है। यहाँ पर हम राजस्थान के कुछ महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थलों का अध्ययन करेंगे।

राजस्थान के पर्यटन स्थल
राजस्थान के पर्यटन स्थल

अजमेर के पर्यटन स्थल 

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर 

मूल रूप से 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा कहलाने वाली इमारत एक संस्कृत महाविद्यालय (विग्रहराज चतुर्थ द्वारा निर्मित) था, परन्तु बाद में सुल्तान मुहम्मद गौरी के सेनापति ऐबक ने इसे मस्ज़िद में तब्दील करवा दिया। हिन्दू व इस्लामिक स्थापत्य कला के इस नमूने को सुल्तान इल्तुतमिश ने और ज्यादा सुशोभित किया। इसका यह नाम पड़ने के पीछे एक किंवदंती है कि इस इमारत को मन्दिर से मस्ज़िद में तब्दील करने में सिर्फ अढ़ाई दिन लगे थे। इसलिए इसका नाम 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पड़ गया। दूसरा मत यह है कि मराठा काल में यहाँ पंजाबशाह बाबा का अढ़ाई दिन का उर्स भी होता था, इसीलिए इसका नाम अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पड़ा।

ख्वाज़ा साहब की दरगाह, अजमेर

अजमेर में सर्वाधिक देशी व विदेशी पर्यटक ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने तथा मन्नत पूरी होने पर चादर चढ़ाने आते हैं। सभी धर्मों के लोगों में ख्वाजा साहब की बड़ी मान्यता है। दरगाह में तीन मुख्य दरवाजे हैं। मुख्य द्वार, 'निज़ाम दरवाज़ा', हैदराबाद के नवाब द्वारा बनवाया गया। मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा 'शाहजहाँनी दरवाजा' बनवाया गया और सुल्तान महमूद खिलजी द्वारा 'बुलन्द दरवाजा' बनवाया गया। उर्स के दौरान दरगाह पर झंडा चढ़ाने की रस्म के बाद, बड़ी देग (तांबे का बड़ा कढ़ाव) जिसमें 4800 किलो तथा छोटी देग में 2240 किलो खाद्य सामग्री पकाई जाती है। जिसे भक्त लोग प्रसाद के तौर पर बाँटते हैं। श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर भी इन देगों में भोजन पकवाते व बाँटते हैं। सर्वाधिक आश्चर्य की बात है कि यहाँ केवल शाकाहारी भोजन ही पकाया जाता है।

आनासागर झील, अजमेर 

यह एक कृत्रिम झील है जिसे राजा अजयराज चौहान के पुत्र अर्णोराज चौहान ने बनवाया। इन्हें 'अन्ना जी' के नाम से पुकारा जाता था तथा इन्हीं के नाम पर आना सागर झील का नाम रखा गया । इसके निकट दौलत बाग, मुगल सम्राट जहाँगीर द्वारा तथा पाँच बारहदरियां, सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई थीं। खूबसूरत सफेद मार्बल में बनी बारहदरियां, हरे भरे वृक्ष-कुन्जों से घिरी हैं। यहाँ सुस्ताने तथा मानसिक शांति के लिए पर्यटक आते हैं।

मेयो कॉलेज, अजमेर

भारतीय राजघरानों के बच्चों के लिए यह बोर्डिंग स्कूल हुआ करता था। अंग्रेजों के समय में रिचर्ड बॉर्क द्वारा 1875 ई. में मेयो कॉलेज की स्थापना की गई। इस भवन का स्थापत्य, इंडो सार्सेनिक (भारतीय तथा अरबी) शैली का अतुलनीय उदाहरण है। संगमरमर से निर्मित यह भवन अत्यंत आकर्षक है।

सोनीजी की नसियां, अजमेर

19वीं सदी में निर्मित यह जैन मन्दिर, भारत के समृद्ध मंदिरों में से एक है। इसके मुख्य कक्ष को स्वर्णनगरी का नाम दिया गया है। इसका प्रवेश द्वार लाल पत्थर से बना है तथा अन्दर संगमरमर की दीवारें बनी हैं, जिन पर काष्ठ आकृतियां तथा शुद्ध स्वर्ण पत्रों से जैन तीर्थंकरों की छवियाँ व चित्र बने हैं।

ब्रह्मा मंदिर, अजमेर

पूरे विश्व का एक मात्र ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर में स्थित है। संगमरमर से निर्मित, चाँदी के सिक्कों से जड़ा हुआ, लाल शिखर और हंस (ब्रह्मा जी का वाहन) की छवि वाले मंदिर में ब्रह्मा जी की चतुर्मुखी प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है। इसी मंदिर में सूर्य भगवान की संगमरमर की मूर्ति प्रहरी की भाँति खड़ी है। इस मूर्ति की विशेषता यह है कि सूर्य भगवान की मूर्ति जूते पहने दिखाई दे रही है।

सावित्री मंदिर, अजमेर

ब्रह्मा मंदिर के पीछे, ऊँची पहाड़ी पर सावित्री मंदिर है जो कि ब्रह्मा जी की पहली पत्नी थी। मंदिर तक पहुँचने के लिए सुविधाजनक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। ऊपर चढ़कर मंदिर से नीचे की ओर झील, मंदिर और रेत के टीलों का विहंगम दृश्य बेहद सुन्दर दिखाई पड़ता है। ऐसी किंवदंती है कि ब्रह्मा जी ने पुष्कर में अपना यज्ञ करने के लिए, गायत्री से दूसरा विवाह किया था। इससे नाराज होकर पहली पत्नी सावित्री ने उन्हें श्राप दिया, जिसके फलस्वरूप ही पूरे विश्व में, ब्रह्मा जी का केवल एक ही मंदिर है पुष्कर में। अब सावित्री मंदिर पर 'रोप-वे की सुविधा उपलब्ध है।

पुष्कर सरोवर, अजमेर

'तीर्थराज' के नाम से प्रसिद्ध पुष्कर सरोवर सभी तीर्थस्थलों का राजा कहलाता हैं। इस सरोवर में डुबकी लगाने पर तीर्थयात्रा सम्पन्न मानी जाती है, ऐसी मान्यता है। अर्द्ध गोलाकार रूप में लगभग 9-10 मीटर गहरी यह झील 500 से अधिक मंदिरों और 52 घाटों से घिरी हुई है।

अलवर के पर्यटन स्थल 

सरिस्का टाइगर रिजर्व, अलवर

सरिस्का को 1 नवम्बर, 1955 को अभयारण्य का दर्जा दिया गया था, तत्पश्चात् सन् 1978-79 में इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा प्रदान कर दिया गया। इसका वन क्षेत्र 1213 वर्ग कि.मी. में है। बाघ के अलावा यहाँ विविध पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ जैसे नीलगाय, लोमड़ी, जंगली सुअर, खरगोश, तेन्दुआ, चीतल, सांभर, बन्दर पाये जाते हैं। पक्षियों में जंगल बैबलर, बुलबुल, क्विल, केस्ट्रेड सर्पेन्ट, ईगल, रैड स्परफाउल, सैण्डग्राउज, वुडपेकर आदि पाये जाते हैं।

भानगढ़, अलवर

सरिस्का वन्य अभयारण्य से पचास कि.मी. दूरी पर भानगढ़ स्थित है। आमेर के महाराजा भगवानदास के पुत्र माधव सिंह ने अपनी प्रथम नगरी के रूप में भानगढ़ की स्थापना की थी। कालान्तर में भानगढ़ के वीरान होने के संबंध में किंवदंतियां प्रचलित हो गई। भानगढ़ को भारत में सर्वाधिक रहस्यमयी स्थान होने का गौरव प्राप्त है। आज भी इस किले के खण्डहरों में सात मंज़िला महल के अवशेष, सुव्यवस्थित बाजार, दुकानें तथा सोमेश्वर महादेव मंदिर, गणेश मंदिर, तालाब नज़र आते हैं।

मूसी महारानी की छतरी, अलवर 

महाराजा बख्तावर सिंह की रानी मूसी रानी की स्मृति में महाराजा विनयसिंह द्वारा बनाई गई इस छतरी की वास्तुकला में भारतीय व इस्लामिक शैली का मिश्रण है। सफेद संगमरमर से बनी इस छतरी में 12 विशाल स्तम्भ तथा 27 अन्य स्तम्भ हैं। इसके आन्तरिक भाग में भगवान श्री कृष्ण, श्री रामचन्द्र जी, लक्ष्मी जी और सीतामाता की छवियां चित्रित हैं। अरावली की पहाड़ियों से घिरी तथा सिटी पैलेस व सागर झील और मन्दिर के पास यह छतरियां शोभायमान हैं। महाराजा बख्तावर सिंह के जीवन सम्बन्धित चित्रण भी इस छतरी में विद्यमान है।

भर्तृहरि मंदिर, अलवर

राजा भर्तृहरि अलवर के एक वैरागी शासक थे। उनके जीवन के अन्तिम वर्ष यहीं बीते थे। महाराजा जयसिंह ने 1924 ई. में भर्तृहरि के मंदिर को नया स्वरूप दिया। मंदिर में एक अखण्ड ज्योत सदैव प्रज्ज्वलित रहती है। यहाँ मुख्य मेला भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा भर्तृहरि की आराधना करने आते हैं। पास में ही हनुमान मंदिर, शिव मंदिर और श्रीराम मंदिर भी स्थित है।

सिलिसेढ़ झील, अलवर

अरावली के पश्चिमी छोर पर, पहाड़ों के बीच प्रसिद्ध सिलिसेढ़ झील स्थित है। अलवर से सरिस्का जाते समय, 15 कि.मी. की दूरी पर यह झील है। इसका निर्माण महाराजा विनयसिंह ने 1845 ई. में सिलिसेढ बांध के रूप में करवाया था। स्थानीय नदी 'रूपारेल' की एक शाखा को रोक कर यह झील बनवाई गई थी। इस झील के किनारे, हरी भरी वादियों के बीच, मोती सा चमकता, सिलिसेढ़ लेक पैलेस दिखाई देता है, जिसे राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा हैरिटेज होटल के रूप में संचालित किया जाता है। सिलिसेढ़ झील में पर्यटकों के लिए बोटिंग तथा बर्ड वॉचिंग की भी सुविधा है। सर्दियों में यहाँ विभिन्न प्रजातियों के पक्षी तथा पानी में तैरती बत्तखें व मगरमच्छ पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।

बांसवाड़ा के पर्यटन स्थल 

इसे सुनहरे द्वीपों का शहर भी कहा जाता है 

माहीबांध, बांसवाड़ा

माही नदी पर बांसवाड़ा से 18 किमी की दूरी पर संभाग का यह सबसे बड़ा बाँध है, जिसमें 16 गेट हैं तथा बांध की कुल लम्बाई 3.10 किमी है। वर्षाकाल में जब यह पूर्ण भर जाता है तब सभी गेट खोलने पर जो दृश्य उत्पन्न होता है उसका नजारा अनुपम और मनोहारी होता है। इसे देखने को पूरे वर्ष सैलानी इंतजार करते हैं। यहाँ वॉटर स्पोर्ट्स की असीम संभावना है।

त्रिपुरा सुन्दरी, बांसवाड़ा

बांसवाड़ा - डूंगरपुर मार्ग पर 19 किमी दूरी पर तलवाडा ग्राम के समीप उमराई गांव में स्थित माँ त्रिपुरा सुन्दरी का प्राचीन मन्दिर है। मंदिर के उत्तरी भाग में सम्राट कनिष्क के समय का एक शिवलिंग होने से कहा जाता है कि यह स्थान कनिष्क के पूर्वकाल से ही प्रतिष्ठित है। काले पाषाण की सिंह पर सवार 18 भुजाओं वाली दिव्य आयुध धारण किए देवी की विशाल प्रतिमा है, जो शक्ति पीठ के रूप में जानी जाती है। स्थानीय लोग इसे 'तरतई माता, त्रिपुरा महालक्ष्मी' के नाम से पुकारते हैं। मंदिर के समीप शिलालेख विक्रम संवत 1540 का लगा हुआ है। देश-विदेश में प्रसिद्ध शक्ति पीठ माँ त्रिपुरा सुन्दरी आस्था का प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल है। चैत्र एवं अश्विन नवरात्रि में हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना हेतु यहाँ आते हैं।

मानगढ़ धाम, बांसवाड़ा

राजस्थान के जलियांवाला बाग के नाम से प्रसिद्ध मानगढ़ धाम बांसवाड़ा से 85 किमी की दूरी पर आनंदपुरी के समीप राजस्थान गुजरात सीमा की पहाड़ी पर स्थित है। यह स्थान आदिवासी अंचल में स्वाधीनता आन्दोलन के अग्रज माने जाने वाले महान संत गोविन्द गुरू की कर्मस्थली माना जाता है। ऐतिहासिक मान्यतानुसार इसी स्थान पर गोविन्द गुरू के नेतृत्व में मानगढ़ की पहाड़ी पर सभा के आयोजन के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता की मांग कर रहे, 1500 राष्ट्रभक्त आदिवासियों पर 17 नवम्बर 1913 को अंग्रेज़ों ने निर्ममता पूर्वक गोलियां चलाकर उनकी नृशंष हत्या कर दी थी। मानगढ़ धाम पर प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राजस्थान, गुजरात एवं मध्यप्रदेश से हजारों श्रद्धालु आते हैं। वर्तमान में इसे राष्ट्रीय शहीद स्मारक के रूप में विकसित किया जा रहा है।

अब्दुल्ला पीर, बांसवाड़ा

यह बोहरा मुस्लिम संत अब्दुल रसूल की लोकप्रिय मज़ार है। शहर के दक्षिणी भाग में स्थित इस दरगाह को अब्दुल्ला पीर के नाम से जाना जाता है। हर वर्ष बड़ी संख्या में विशेषतः बोहरा समुदाय के लोग दरगाह के उर्स में शामिल होने आते हैं।

बारां के पर्यटन स्थल 

सीताबाड़ी, बारां 

सीता माता और लक्ष्मण को समर्पित यह मन्दिर, बारां से 45 कि.मी. दूर है तथा ऐसी मान्यता है कि भगवान राम और सीता के दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म यहीं पर हुआ था। इसमें कई कुण्ड भी हैं जैसे वाल्मीकि कुण्ड, सीता कुण्ड, लक्ष्मण कुण्ड, सूर्य कुण्ड आदि। प्रसिद्ध 'सीताबाड़ी मेला' भी यहीं आयोजित किया जाता है। यह एक पिकनिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है।

शेरगढ़ किला, बारां 

बारां से लगभग 65 किमी की दूरी पर परवन नदी के किनारे पर स्थित शेरगढ़ किला सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। यह स्मारक शासकों हेतु सामरिक महत्त्व रखता था। अनेक वर्षों से विभिन्न राजवंशों के शासन में शेरगढ़ को अपना नाम शेरशाह द्वारा कब्जा करने के बाद मिला। इसका मूल नाम कोषवर्धन था।

रामगढ़ भंडदेवरा मंदिर, बारां 

शहर से 40 कि.मी. दूरी पर भगवान शिव को समर्पित यह मन्दिर 10वीं शताब्दी का प्राचीन मन्दिर माना जाता है। इसकी वास्तुकला की शैली खजुराहो शैली से मिलती जुलती है, इसी लिए इसे राजस्थान का 'मिनी खजुराहो' भी कहा जाता है। एक छोटे तालाब के किनारे बसा यह मन्दिर अन्य मन्दिरों से अनूठा है। यहाँ प्रसाद के तौर पर, एक देवता को मिठाई व सूखे फल चढ़ाए जाते हैं तो दूसरे आराध्य की सेवा में मांस मदिरा प्रस्तुत किया जाता है।

बाड़मेर के पर्यटन स्थल 

किराडू मन्दिर, बाड़मेर 

थार के रेगिस्तान में चमकते लाल माणक जैसे यह मन्दिर शहर से लगभग 35 कि.मी. दूर है, जिन्हें आप जाकर देखें तो देखते ही रह जाएँ। सोलंकी वास्तुकला शैली में उभरे कंगूरे स्तम्भ और पत्थर पर की गई बारीक नक्काशी का काम इन मंदिरों को विशिष्ट बनाता है। इन मन्दिरों को भगवान शिव को समर्पित किया गया है। उल्लेखनीय है कि यहाँ कुछ मूर्तियाँ यथा स्थान, कुछ इधर उधर रेत के धोरों में बिखरी पड़ी हैं। यहाँ पाँच मन्दिर हैं, जिनमें 'सोमेश्वर महादेव' मंदिर कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ है।

श्री नाकोड़ा जी जैन मन्दिर, बाड़मेर 

यह भव्य जैन मन्दिर, बहुत सारे हमले सह चुका है। आलमशाह ने 13वीं शताब्दी में इस मन्दिर पर हमला किया और इसे लूट कर ले गया था। लेकिन भाग्यवश भगवान की प्रतिमा को नहीं ले जा सका था। गांव वालों को इस हमले का आभास होने पर उन्होंने इस मूर्ति को गाँव में ही ले जाकर छिपा दिया था। शांति होने के बाद, 15वीं सदी में प्रतिमा को वापस लाकर मंदिर में पुनः स्थापित किया गया। वैसे तीसरी शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को कई बार पुनर्निर्मित किया जा चुका था। यहाँ सबसे बड़ा मंदिर पार्श्वनाथ का है।

रानी भटियानी मन्दिर, बाड़मेर 

'भुआ सा' के नाम से प्रसिद्ध रानी भटियानी एक हिन्दू देवी हैं जो पश्चिमी राजस्थान और सिंध पाकिस्तान में पूजनीय है। बाड़मेर के जसोल गाँव में स्थित रानी भटियानी का मंदिर मुख्यतया ढोली जाति की आस्था का केन्द्र है। यह रानी जैसलमेर के जोगीदास गाँव की राजकुमारी थी तथा भाटी राजपूत थीं। राठौड़ राजा से शादी करके बाड़मेर आईं, परन्तु राठौड़ राजा की बड़ी रानी ने इन्हें तथा इनके पुत्र लालसिंह को ईर्ष्यावश जहर दिलवा कर मरवा दिया था।

भरतपुर के पर्यटन स्थल 

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर

घने वृक्ष, तालाब तथा शोरगुल से दूर यह स्थान पक्षियों के लिए स्वर्ग समान है। इसे 1971 ई. में संरक्षित पक्षी अभयारण्य तथा 1985 ई. में 'विश्व धरोहर' भी घोषित किया गया। यहाँ हजारों की संख्या में विदेशी दुर्लभ पक्षी, प्रतिवर्ष सर्दियों में आते हैं, अपने घोंसले बनाते हैं, प्रजनन करते हैं तथा गर्मी की शुरूआत होते होते वापस अपने देश चले जाते हैं। लगभग 230 प्रजातियों के पक्षी यहाँ देखे जा सकते हैं। 18वीं सदी के मध्य में भरतपुर के दक्षिण-पूर्व में एक छोटे जलाशय के रूप में, 'घना पक्षी विहार' निर्मित किया गया था। आज इसे विश्व का सबसे ज्यादा शानदार व आकर्षक पक्षी विहार होने का गौरव प्राप्त है। इसमें भारतीय सारस क्रेन, साइबेरियन क्रेन, जल मुर्गी, चीनी मुर्गी, हैरन, पेन्टेड स्टॉर्क, कार्पोरेन्ट, नॉब बिल्ड डक, व्हाइट स्पून बिल, सैण्ड पाइपर आदि विभिन्न प्रजातियों के पक्षी आते व विचरण करते हैं।

लोहागढ़ किला, भरतपुर 

नाम से ही प्रभावित करने वाला यह किला कई ब्रिटिश हमलों का सामना कर चुका है और अंततः ब्रिटिश सैन्य अधिकारी लार्ड कंबरमियर ने 1826 में इस पर कब्जा कर लिया था। इसके मजबूत गेट अष्ट धातु व लकड़ी के बने हैं तथा दुश्मनों से बचने के लिए, इसके चारों ओर गहरी खाई है जिसमें पानी भर दिया जाता था। किले के अन्दर सुन्दर स्मारकों में कोठी खास, महल खास, मोती महल और किशोरी महल हैं। किले की आठ विशाल बुर्जों में से जवाहर बुर्ज महाराजा जवाहरसिंह की मुगलों पर विजय (1765) तथा फतेहबुर्ज अंग्रेजों पर विजय के स्मारक के रूप में 1806 में बनाई गई।

बंध बारेठा, भरतपुर 

यह भरतपुर के शासकों का पुराना वन्यजीव अभयारण्य है, जहाँ शिकार खेलने के लिए केवल शाही परिवार आते थे। अभी यह वन विभाग के अधीन है। महाराजा जसवंत सिंह ने 1866 ई. में यहाँ पर बांध का निर्माण प्रारम्भ कराया था और 1897 ई. में महाराजा रामसिंह ने इसे पूरा करवाया था। इस बांध के निकट 'शाही महल' महाराजा किशन सिंह ने बनवाया था, जो कि अब भरतपुर शाही परिवार की निजी सम्पत्ति है। बंध बारेठा में चौपाये जानवरों के अलावा लगभग 200 से अधिक प्रजातियों के पक्षी विचरण करते हैं।

गंगा मंदिर, भरतपुर 

भरतपुर का लोकप्रिय मंदिर, राजपूत, मुगल तथा द्रविड़ स्थापत्य शैली का सुन्दर मिश्रण है। यह मंदिर महाराजा बलवंत सिंह द्वारा 1845 ई. में बनाना शुरू किया गया था, जिसका निर्माण कार्य 90 वर्षों तक चला। उनके उत्तराधिकारी राजा बृजेन्द्र सिंह ने इस मंदिर में देवी गंगा नदी की मूर्ति की स्थापना की थी। ऐसी मान्यता है कि इसके निर्माण के लिए, राज्य के सभी कर्मचारियों तथा समृद्ध लोगों ने एक माह का वेतन दान किया था। यहाँ मुख्य आकर्षण भगवान कृष्ण, लक्ष्मीनारायण और शिव पार्वती की मूर्तियाँ हैं। गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा के अवसर पर यहाँ बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

भीलवाड़ा के पर्यटन स्थल 

भीलवाड़ा को वस्त्र नगरी भी कहा जाता है। 

मेनाल जल-प्रपात, भीलवाड़ा 

भीलवाड़ा से 80 कि.मी. दूर, कोटा रोड़ पर नेशनल हाइवे 27 पर मेनाल अपने अलौकिक, नैसर्गिक वैभव के कारण, हजारों की संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। चारों तरफ जंगलों से घिरा मेनाल का झरना, दूर दराज क्षेत्रों से आने वाले तथा विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। 150 फीट गहरी खाई में गिरने वाली इसकी जलधारा, बड़ी जोर की आवाज करती है और देखने वालों की नजर वहाँ से नहीं हटती। मेनाल में शिव जी का अत्यन्त सुन्दर, वैभवशाली मंदिर है।

मांडलगढ़, भीलवाड़ा

भीलवाड़ा से 54 किमी दूर स्थित इस जगह का ऐतिहासिक महत्त्व है, क्योंकि यह मध्य काल के दौरान कई युद्धों का साक्षी रहा है। इतिहास प्रसिद्ध हल्दी घाटी युद्ध से पूर्व मुगल सेनापति मानसिंह ने इस स्थान पर डेरा जमाया था। लगभग आधा मील लंबा किला पहाड़ी के शिखर पर प्राचीरों और खाई की सुरक्षा के साथ अडिग है। किले में दो मंदिर है, जिसमें एक भगवान शिव को समर्पित हैं और दूसरा भगवान कृष्ण को समर्पित है।

शाहपुरा, भीलवाड़ा

भीलवाड़ा से 55 कि.मी. दूर शाहपुरा कस्बा है। यह चार दरवाजे वाली दीवार से घिरा, राम स्नेही संप्रदाय के अनुयायियों के लिए सन् 1804 में स्थापित तीर्थस्थान है। पूरे वर्ष देशभर से श्रद्धालु यहां आते हैं। यहाँ पांच दिन के लिए फूल डोल मेला के रूप में जाना जाने वाला वार्षिक मेला फाल्गुन शुक्ला (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है। शाहपुरा के उत्तरी भाग में एक विशाल महल परिसर है, जो छज्जों, मीनारों और छतरियों द्वारा सुशोभित है। इसके ऊपरी भाग से रमणीय झील और शहर के सुंदर दृश्य को देखा जा सकता है। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह, जोरावर सिंह और प्रताप सिंह बारहठ शाहपुरा के थे। त्रिमूर्ति स्मारक, बारहठ जी की हवेली, (जो अब राजकीय संग्रहालय में परिवर्तित कर दी गई है।) और पिवनीया तालाब यहाँ के अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण हैं। शाहपुरा पारंपरिक फड़ चित्रकला के लिए भी जाना जाता है।

बूंदी के पर्यटन स्थल 

बूंदी को कुंड व बावड़ियों का शहर भी कहा जाता है। 

तारागढ़ फोर्ट, बूंदी

राजपूत शैली में, 1354 ई. में राजा बरसिंह द्वारा निर्मित यह किला बून्दी की सबसे आकर्षक जगह है। यह किला और महल ऊँची पहाड़ी पर बने हैं तथा दुर्भाग्यवश जंगली झाड़ियों के बीच जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। इसकी सुन्दरता का अनुमान, इसके देवालय, स्तंभ, शीर्ष मंडपों वाली छतरियाँ, वक्राकार छत और हाथी व कमल के रूप में सजी इनकी सुन्दरता से लगाया जा सकता है।

चौरासी खम्भों की छतरी, बूंदी

बूंदी के महाराजा अनिरूद्ध सिंह द्वारा अपने धाय भाई देवा की स्मृति में बनवाई गई छतरी, चौरासी खम्भों पर टिकी है। यह एक प्रभावशाली तथा सुन्दर संरचना है, जिसे पर्यटक इसकी कलात्मक नक्काशी जिसमें हिरण, हाथी तथा अप्सराओं का चित्रांकन है, के कारण बहुत पसंद करते हैं।

चित्र महल, बून्दी

बून्दी का "चित्र महल" किसी जमाने में बहुत शानदार बगीचों से भरपूर महल था, जिसमें विभिन्न कलात्मक फव्वारे लगे हुए थे तथा बहुत से तालाब थे, जिनमें विविध प्रजातियों की तथा अनोखी व विदेशी मछलियाँ हुआ करती थीं। इस महल का नाम इसीलिए "चित्र महल" रखा गया है क्योंकि इस की सभी दीवारों और छतों को बेहद सुन्दर व आकर्षक पेन्टिंग्स से सजाया गया है। पुराने जमाने में, अट्ठारहवीं शताब्दी के दौरान, बून्दी शहर मिनिएचर पेन्टिंग्स बनाने वाले कलाकारों का गढ़ था तथा यहाँ के राजा मिनिएचर पेन्टिंग्स को बहुत बढ़ावा देते थे। देवी देवताओं, युद्ध के दृश्यों तथा हाथियों और 'राधा कृष्ण' के विभिन्न क्रिया कलापों के चित्र केवल इसी क्षेत्र की कला में ही देखने को मिलते हैं। चित्र महल में एक और "चित्रशाला" भी है जिसे महाराजा उम्मेद सिंह जी के आदेशों से बनाया गया था। यह चित्रशाला चूंकि महल के एकदम अन्दरूनी हिस्से में है, इसीलिए यहाँ बनी पेंटिग्स को सूर्य की रौशनी तथा मौसम की नमी से अभी तक कोई नुकसान नहीं पहुंचा है तथा कलाकारों द्वारा पेन्टिंग्स को दी गई चमक और रंग अपने मूल रूप में मौजूद हैं।

रानी जी की बावड़ी, बूंदी

'क्वीन स्टैपवैल, (रानी जी की बावड़ी), सन् 1699 में बूंदी के शासक राव राजा अनिरूद्ध सिंह जी की छोटी रानी नाथावती जी द्वारा बनवाई गई थी। इस बावड़ी का मुख्य द्वार, आमन्त्रण देता प्रतीत होता है। बहुमंजिला बावड़ी के तोरणद्वार पर गजराज के उत्कृष्ट नक्काशीदार अंकन हैं, जिसमें उनकी सूंड को अन्दर की ओर मोड़ा गया है, जिससे ऐसा आभास होता है मानो हाथी बावड़ी से पानी पी रहा है।

चित्तौड़गढ़ के पर्यटन स्थल 

चित्तौड़गढ़ किला

सिसोदिया राजपूतों का गढ़ यह किला गम्भीरी और बेड़च नदी के तट पर स्थित है। इस किले के निर्माण की ऐतिहासिक तिथि पर मतभेद है। पौराणिक कथा के अनुसार इसका निर्माण पौराणिक युग में महाभारत महाकाव्य के एक पांडव नायक भीम द्वारा प्रारम्भ करवाया गया था। किले में बहुत से भव्य स्मारक हैं, जिनमें से कुछ समय की मार झेल कर जीर्ण-शीर्ण हो रहे है।

विजय स्तम्भ, चित्तौड़गढ़

यह महाराणा कुम्भा ने मालवा के मुस्लिम शासक को हराकर, अपनी विजय का जश्न मनाने और उसे चिरस्थाई करने के उपलक्ष्य में सन् 1440 ई. में बनवाना शुरू किया, जो कि 8 वर्षों में निर्मित हुआ। शिल्प कला का अद्भुत नमूना 'विजय स्तम्भ', लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनाया गया, 9 मंजिला स्तम्भ है। इसमें हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियाँ अलंकृत की गई हैं। इसमें ऊपर जाने के लिए संकरी सीढ़ियों का रास्ता है और ऊपर जाकर बालकनियों से पूरे शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।

कीर्ति स्तम्भ, चित्तौड़गढ़ 

यह विशाल स्तम्भ, जैन तीर्थंकर तथा महान शिक्षाविद आदिनाथ जी को समर्पित है। एक धनी जैन व्यापारी जीजा बघेरवाल तथा उसके पुत्र पुण्य सिंह ने, 13वीं शताब्दी में बनवाया था। यह 24.5 मीटर ऊँचा हिन्दू स्थापत्य शैली में बना, विजय स्तम्भ से भी पुराना है। इस 6 मंजिले स्तम्भ पर जैन तीर्थंकरों की तथा ऊपरी मंजिलों में सैंकड़ों लघु मूर्तियां शिल्पांकित की गई हैं।

भैंसरोडगढ़ किला, चित्तौड़गढ़ 

यह भव्य आकर्षक किला, 200 फुट ऊँची सपाट पहाड़ी की चोटी पर, चम्बल और ब्राह्मणी नदियों से घिरा हुआ है। इस किले की सुन्दरता से अभिभूत होकर, ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स टॉड ने कहा था कि यदि उन्हें राजस्थान में एक जागीर (संपत्ति) की पेशकश की जाए तो वह 'भैंसरोडगढ़' को ही चुनेंगे। कोई सटीक जानकारी न मिलने के कारण, इस किले के निर्माण के सम्बन्ध में कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता। हालांकि यह किला दूसरी शताब्दी में निर्मित किया गया, ऐसा माना जाता है। कई वंशों के अधीन रहने के बाद ऐसी मान्यता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने भी इस किले पर हमला किया था तथा यहाँ के सभी पुराने मंदिर और इमारतों को नष्ट कर दिया था। वर्तमान में इस किले को शाही परिवार द्वारा एक शानदार हैरिटेज होटल के रूप में संचालित किया जा रहा है। तीन तरफ नदियों से घिरे तथा अरावली पर्वत माला व घने जंगलों के बीच स्थित इस किले की खूबसूरती, देशी व विदेशी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है।

दौसा के पर्यटन स्थल 

चाँद बावड़ी - आभानेरी

राजा चंद्र द्वारा स्थापित, जयपुर-आगरा सड़क पर आभानेरी की चाँद बावड़ी, दौसा जिले का मुख्य आकर्षण है। इसका असली नाम 'आभा नगरी' था, परन्तु आम बोल चाल की भाषा में आभानेरी हो गया। पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ प्रत्येक वर्ष सितम्बर-अक्टूबर में 'आभानेरी महोत्सव' आयोजित किया जाता है। यह दो दिन चलता है तथा पर्यटकों के मनोरंजन के लिए राजस्थानी खाना तथा लोक कलाकारों द्वारा विभिन्न गीत व नृत्य के कार्यक्रम होते हैं।

हर्षद माता मंदिर - आभानेरी

दौसा से 33 कि.मी. दूर, चाँद बावड़ी परिसर में ही स्थित, यह मंदिर हर्षद माता को समर्पित है। हर्षद माता अर्थात उल्लास की देवी। ऐसी मान्यता है कि देवी हमेशा हँसमुख प्रतीत होती है और भक्तों को खुश रहने का आशीर्वाद प्रदान करती है।

धौलपुर के पर्यटन स्थल 

वन विहार अभयारण्य, धौलपुर

धौलपुर के शासकों के मनोरंजन के लिए यह अभयारण्य 24 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बनाया गया था। यह अभयारण्य पर्यटकों तथा विशेषकर प्रकृति प्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र यहाँ पाए जाने वाले साँभर, चीतल, नील गाय, जंगली सूअर, भालू, हाईना और तेंदुआ जैसे जीवों के साथ-साथ, विभिन्न वनस्पतियों का भण्डार है।

मचकुंड, धौलपुर

सूर्यवंशीय साम्राज्य के 24वें शासक, राजा मुचुकुंद के नाम पर इस प्राचीन और पवित्र स्थल का नाम रखा गया। शहर से लगभग 4 कि.मी. की दूरी पर, यह स्थल भगवान राम से पहले, 19वीं पीढ़ी तक, राजा मुचुकुंद के शाही कार्यस्थल के रूप में रहा। प्राचीन धार्मिक साहित्य के अनुसार, राजा मुचुकुंद एक बार गहरी नींद में सोया हुआ था, तभी दैत्य कालयमन ने अचानक उसे उठा लिया। परन्तु एक दैवीय आशीर्वाद से दैत्य जलकर भस्म हो गया। इसी कारण यह प्राचीन पावन तीर्थ स्थल माना जाता है।

तालाब-ए-शाही, धौलपुर

सन् 1617 में यह तालाब-ए-शाही के नाम से मशहूर एक खूबसूरत झील, शहजादे शाहजहाँ के लिए शिकारगाह के रूप में बनवाई गई थी। धौलपुर से 27 कि.मी. दूर और बाड़ी से 5 कि.मी. की दूरी पर, यह झील, राजस्थान की खूबसूरत झीलों में से एक है। यहाँ पर सर्दियों के मौसम में कई प्रकार के प्रवासी पक्षी अपने घोंसले बनाने के लिए आते हैं जैसे पिंटेल, रैड कास्टैंड पोच, बत्तख, कबूतर आदि।

डूंगरपुर के पर्यटन स्थल 

बेणेश्वर मंदिर, डूंगरपुर

सोम व माही नदियों में डुबकी लगाने के बाद, बेणेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना करने के लिए भक्तगण समर्पण के भाव से यहाँ आते हैं। इस अंचल के सर्वाधिक पूजनीय शिवलिंग बेणेश्वर मंदिर में स्थित है। सोम और माही नदियों के तट पर स्थित पांच फीट ऊँचा ये स्वयंभू शिवलिंग शीर्ष से पांच हिस्सों में बंटा हुआ है। बेणेश्वर मंदिर के पास स्थित विष्णु मंदिर, एक अत्यंत प्रतिष्ठित संत और भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले 'मावजी' की बेटी, जनककुंवरी द्वारा 1793 ई. में निर्मित किया गया था। कहा जाता है कि मंदिर उस स्थान पर निर्मित है जहां मावजी ने भगवान से प्रार्थना करते हुए अपना समय बिताया था। मावजी के दो शिष्य 'अजे' और 'वाजे' ने लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण किया। इन मंदिरों के अलावा भगवान ब्रह्मा का मन्दिर भी है। माघ शुक्ल पूर्णिमा (फरवरी) यहाँ, सोम व माही नदियों के संगम पर विशाल मेला लगता है, जहाँ दूर दूर के गाँवों तथा शहरों से लोग तथा आदिवासी, पवित्र स्नान करने व मंदिर में पूजा करने आते हैं।

गलियाकोट, डूंगरपुर

दाऊदी बोहरा समाज का पवित्र स्थान है 'गलियाकोट दरगाह'। डूंगरपुर से 58 किलोमीटर की दूरी पर माही नदी के किनारे स्थित, गलियाकोट नामक एक गांव है। यह स्थान सैयद फखरूद्दीन की मजार के लिए जाना जाता है। वह एक प्रसिद्ध संत थे जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद गांव में ही दफन किया गया था। यह मजार श्वेत संगमरमर से बनायी गयी है और उनकी दी हुई शिक्षाएं दीवारों पर सोने के पानी से उत्कीर्ण हैं। गुंबद के अन्दरूनी हिस्से को खूबसूरत स्वर्णपत्रों से सजाया गया है, जबकि पवित्र कुरान की शिक्षाओं को कब्र पर सुनहरे पन्नों में उत्कीर्ण किया गया है।

गैब सागर झील, डूंगरपुर

इस झील के प्राकृतिक वातावरण और कोलाहल से दूर होने के कारण यहाँ बड़ी संख्या में पक्षियों का बसेरा है। रमणीय झील गैब सागर डूंगरपुर का एक प्रमुख आकर्षण है इसके तट पर श्रीनाथ जी का मंदिर समूह है। इस मंदिर परिसर में कई अति सुंदर नक्काशीदार मंदिर और 'विजय राजराजेश्वर' मंदिर शामिल है।

हनुमानगढ़ के पर्यटन स्थल 

काली बंगा, हनुमानगढ़

4500 वर्ष पूर्व यहाँ सरस्वती नदी के किनारे हड़प्पा कालीन सभ्यता फल फूल रही थी। पुरातत्त्व प्रेमियों के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान कालीबंगा हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति स्थल के कारण प्रसिद्ध है। ये अवशेष 2500 वर्ष ईसा पूर्व के हड़प्पा और पूर्व हड़प्पा युग से संबंधित हैं। कालीबंगा में खुदाई से हड़प्पाकालीन सील, मानव कंकाल, अज्ञात स्क्रिप्ट, तांबे की चूंड़ियाँ, मोती, सिक्के, टेराकोटा और सीप के खिलौने मिले हैं। यहाँ 1983 ई. में स्थापित एक पुरातत्त्व संग्रहालय भी है, जिसे 1961-1969 के दौरान हड़प्पा स्थल पर खुदाई से निकले अवशेषों के लिए निर्मित किया गया था। यहाँ संग्रहालय में तीन दीर्घाएं हैं जिनमें एक दीर्घा 'पूर्व हड़प्पा काल' और शेष दो दीर्घाएं हड़प्पा काल की कलाकृतियों के लिए समर्पित हैं।

भटनेर किला, हनुमानगढ़

भटनेर, भट्टी नगर का अपभ्रंश है, तथा उत्तरी सीमा प्रहरी के रूप में विख्यात है। भारत के सबसे पुराने किलों में से एक माना जाने वाला भटनेर किला या हनुमानगढ़ किला घग्घर नदी के तट पर स्थित है। किले का महत्व इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि आईन-ए-अकबरी में इसका उल्लेख किया है। किले का निर्माण लगभग 17 सौ साल पहले जैसलमेर के राजा भाटी के पुत्र भूपत ने किया था। तैमूर और पृथ्वीराज चौहान सहित कई साहसी शासकों ने किले पर कब्जा करने की कोशिश की, सदियों से कोई भी इस किले को नहीं जीत पा रहा था। अंत में, वर्ष 1805 में, बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने भाटी राजाओं को पराजित किया और किले पर कब्जा कर लिया।

जयपुर के पर्यटन स्थल 

जयपुर को गुलाबी नगर भी कहा जाता है। 

हवा महल, जयपुर

बाहर की तरफ से भगवान कृष्ण के मुकुट जैसा दिखाई देने वाला यह महल अनूठा है। सन् 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा बनवाया गया यह महल पाँच मंजिला है तथा इसका डिजाइन वास्तुकार लालचंद उस्ता द्वारा तैयार किया गया था। गुलाबी शहर का प्रतीक हवा महल, बलुआ पत्थर से बना राजस्थानी वास्तुकला और मुगल शैली का मिश्रण है। इसकी दीवारें सिर्फ डेढ़ फुट चौड़ी हैं तथा 953 बेहद सुन्दर आकर्षक छोटे छोटे आकार के झरोखे हैं। इसे बनाने का मूल उद्देश्य था कि शहर में होने वाले मैले-त्यौहार तथा जुलूस को महारानियाँ इस महल के अन्दर बैठकर देख सकें। हवा महल गर्मी के मौसम में भी इन झरोखों के कारण वातानुकूलित रहता है।

आमेर महल, जयपुर 

जयपुर से 11 कि.मी. की दूरी पर कछवाहों की पुरानी राजधानी आमेर, अपने किले और स्थापत्य के लिए पर्यटकों का मुख्य आकर्षण है। यूनेस्को की 'विश्व धरोहर' सूची में शामिल, पूर्व में कच्छवाहा राजपूतों की राजधानी आमेर महल ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यह हिन्दू व मुगल शैली का सुन्दर मिश्रण है। आमेर का महल सन् 1592 में राजा मानसिंह प्रथम ने दुश्मनों से मुकाबला और बचाव करने के लिए बनवाया था। आमेर महल का आंतरिक भाग, लाल बलुआ पत्थर तथा संगमरमर से बनाया गया तथा इसमें नक्काशी का कार्य बहुमूल्य पत्थरों की जड़ाई, मीनाकारी का काम, पच्चीकारी काम, जगह-जगह लगे बड़े बड़े दर्पण, इसकी भव्यता को चार चाँद लगाते हैं।

जंतर - मंतर, जयपुर

जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा बनवाई गई पाँच खगोलीय वेधशालाओं में सबसे विशाल है, जयपुर की यह वेधशाला। इसे जंतर मंतर कहते हैं। यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। इसमें बनाए गए जटिल यंत्र, समय को मापने, सूर्य की गति व कक्षाओं का निरीक्षण तथा आकाशीय पिंडों के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक जानकारी देते हैं।

जयगढ़ फोर्ट, जयपुर

सन् 1726 में, महाराजा जयसिंह द्वितीय द्वारा यह किला आमेर की सुरक्षा के लिए बनवाया गया था। इसमें बने शस्त्रागार, अनूठा शस्त्र संग्रहालय, तोपें बनाने का कारखाना तथा विश्व की सबसे बड़ी तोप 'जयबाण' के कारण, राजस्थान में आने वाला प्रत्येक पर्यटक, जयपुर आकर इस तोप को जरूर देखना चाहता है। इस तोप को एक बार चलाया गया था जिससे शहर से 35 कि.मी. दूर एक गड्डा बन गया था। इसकी लम्बाई 31 फीट 3 इंच है तथा वजन 50 टन है। इसके 8 मीटर लंबे बैरल में 100 किलो गन पाउडर भरा जाता था ।

नाहरगढ़ किला, जयपुर

अंधेरी रात में, तारों की छाँव में, नाहरगढ़ किले से जयपुर शहर का विहंगम, अभूतपूर्व, अद्भुत और मदमस्त नजारा, सारी दुनियां में और कहीं नहीं मिलेगा। शहर की रोशनी को देखकर लगता है, तारे जमीन पर उतर आए हैं। सन् 1734 में महाराजा जयसिंह के शासनकाल के दौरान इस किले का निर्माण किया गया, जो कि शहर का पहरेदार मालूम होता है। इस किले में बनाए गए माधवेन्द्र भवन को ग्रीष्म काल में महाराजा के निवास के रूप में काम में लिया जाता था। रानियों के लिए आरामदेय बैठक तथा राजा के कक्षों का समूह, आलीशान दरवाजों, खिड़कियों और भित्तिचित्रों से सजाया गया, नाहरगढ़ अतीत की यादों को समेटे शान से खड़ा है। अभी हाल ही में महल में एक स्कल्पचर आर्ट गैलरी भी बनवाई गई है।

अल्बर्ट हॉल (सेंट्रल म्यूजियम), जयपुर

सन् 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स ने इसकी आधारशिला रखी थी। इसका नाम लंदन के अल्बर्ट संग्रहालय के नाम पर रखा गया था। सर स्विन्टन जैकब द्वारा इसका डिजाइन बनवाया था तथा इंडो-सार्सेनिक स्थापत्य शैली के आधार पर इसका निर्माण करवाया गया। रामनिवास बाग के बीच में अल्बर्ट हॉल की अभूतपूर्व और मनमोहक इमारत, हर मौसम में पर्यटकों को आकर्षित करती है। इसमें जयपुर कला विद्यालय, कोटा, बूंदी, किशनगढ़ और उदयपुर शैली के लघु चित्रों का बड़ा संग्रह है।

गलता जी, जयपुर

गलता जी जयपुर का एक प्राचीन तीर्थ स्थान है। यह गालव ऋषि की तपोस्थली है। गलता जी स्थित कुंड में स्नान का धार्मिक महत्व है। तीर्थ यात्री यहाँ पवित्र स्नान हेतु आते हैं। इस स्थान में मंदिर, मंडप और पवित्र कुंड हैं। गलता जी आने के लिए आगंतुक पहले रामगोपाल जी मंदिर परिसर में आते हैं, जिसे स्थानीय लोगों द्वारा 'बंदर मंदिर' कहा जाता है। इसे ये नाम यहाँ पाये जाने वाले 'बंदरों के एक बड़े समूह' की वजह से मिला। हरियाली का खूबसूरत नजारा और उछलते कूदते बंदर क्षेत्र के खुशनुमा माहौल में इजाफा करते हैं। पहाड़ी की चोटी पर सूर्य देव को समर्पित एक छोटा मंदिर है, जिसे 'सूर्य मंदिर' कहा जाता है। दीवान कृपाराम द्वारा निर्मित ये मंदिर शहर के लोगों के लिए पूजनीय है।

ईसरलाट (सरगासूली), जयपुर

शहर के बीचों बीच 60 फीट ऊँची भव्य मीनार 'ईसरलाट' को स्वर्ग भेदी मीनार या 'सरगासूली' भी कहते हैं। राजा ईश्वरी सिंह ने 1749 ई. में इस मीनार को एक शानदार जीत की स्मृति में बनवाया था। त्रिपोलिया गेट के निकट स्थित इस मीनार में अन्दर की तरफ ऊपर तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं, जिनसे चढ़कर ऊपर से जयपुर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

गोविन्द देव जी मंदिर, जयपुर

श्री गोविन्द देव जी की आकर्षक प्रतिमा सवाई जयसिंह वृन्दावन से जयपुर लाए थे, जो यहाँ पूरे सम्मान से शहर के परकोटे में स्थित श्री गोविन्द देव जी मंदिर में स्थापित की गई। शाही परिवार और स्थानीय लोगों द्वारा पूजनीय गोविन्द देवजी में सात झांकियों के माध्यम से दर्शन की समुचित व्यवस्था है।

जैसलमेर के पर्यटन स्थल 

जैसलमेर को किले व हवेलियों का शहर भी कहते है। 

जैसलमेर का किला

यह किला एक वर्ल्ड हैरिटेज साइट है। थार मरूस्थल के 'त्रिकुटा पहाड़ी' पर खड़ा यह किला बहुत सी ऐतिहासिक लड़ाईयाँ देख चुका है। सूरज की रोशनी जब इस किले पर पड़ती है तो यह पीले बलुआ पत्थर से बना होने के कारण, सोने जैसा चमकता है। इसीलिए इसे 'सोनार किला' या 'गोल्डन फोर्ट' कहते हैं।

डेजर्ट नेशनल पार्क, जैसलमेर

थार रेगिस्तान के विभिन्न वन्यजीवों का सबसे महत्त्वपूर्ण आवास है यह पार्क। जानवरों की विभिन्न प्रजातियां जैसे काले हिरण, चिंकारा और रेगिस्तान में पाई जाने वाली लोमड़ी, ये सब पार्क में विचरण करते हैं। लुप्तप्रायः ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, जो दुनिया का सबसे बड़ी उड़ान भरने वाले पक्षियों में से एक है, उसे भी यहाँ देखा जा सकता है। यह नेशनल पार्क जैसलमेर से 40 कि.मी. की दूरी पर है।

पटवों की हवेली, जैसलमेर

इस हवेली के अन्दर पाँच हवेलियाँ हैं जो कि गुमान चंद पटवा ने अपने पाँच बेटों के लिए, 1805 ई. में बनवाई थी। इसे बनाने में 50 साल लग गए थे। जैसलमेर में सबसे बड़ी और सबसे खूबसूरत नक्काशीदार हवेली, यह पांच मंजिला संरचना एक संकरी गली में गर्व से खड़ी है। यद्यपि हवेली अब अपनी उस भव्य महिमा को खो चुकी है, तथापि कुछ चित्रकारी और काँच का काम अभी भी अंदर की दीवारों पर देखा जा सकता है।

तन्नोट माता मंदिर, जैसलमेर

भाटी राजपूत नरेश तणुराव (तन्नू जी) ने वि.सं. 828 में तन्नोट माता का मंदिर बनवा कर, मूर्ति की स्थापना की थी। यहाँ आस पास के सभी गाँवों के लोग तथा विशेषकर, बीएसएफ के जवान यहाँ पूर्ण श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं। जैसलमेर से क्रीब 120 किलोमीटर दूर 'तन्नोट माता' मंदिर है। तन्नोट माता को देवी हिंगलाज का पुनर्जन्म माना जाता है।

रामदेवरा मंदिर, जैसलमेर

रूणीचा बाबा रामदेव और रामसा पीर का पुण्य स्थान है 'रामदेवरा मंदिर'। इन्हें सभी धर्मों के लोग पूजते हैं। रामदेव जी राजस्थान के एक लोक देवता हैं। इनकी छवि घोड़े पर सवार, एक राजा के समान दिखाई देती है। इन्हें हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। वैसे भी राजस्थान के जनमानस में पाँच पीरों की प्रतिष्ठा है, उनमें से एक रामसा पीर का विशेष स्थान है। पोकरण से 12 किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर जैसलमेर मार्ग पर 'रामदेवरा मंदिर' स्थित है। अधिकांश लोग यह मानते हैं कि यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है, पर वास्तव में यह प्रसिद्ध संत बाबा रामदेव को समर्पित है। यह मंदिर बाबा रामदेव के अन्तिम विश्राम का स्थान माना जाता है। सभी धर्मों के लोग यहाँ यात्रा के लिए आते हैं। यहाँ भाद्रपद में 'रामदेवरा मेले' के नाम से एक बड़ा लोकप्रिय मेला आयोजित किया जाता है। बड़ी संख्या में भक्त यहाँ आकर रात भर भक्तिपूर्ण गीत गाते हैं।

बड़ा बाग, जैसलमेर

यह एक विशाल उद्यान है, जो भाटी राजाओं की स्मृतियों को समेटे हुए है। बड़ा बाग जैसलमेर के उत्तर में 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसे 'बरबाग' भी कहा जाता है। इस बगीचे में जैसलमेर राज्य के पूर्व महाराजाओं की शाही छतरियां हैं। उद्यान का स्थान ऐसी जगह है कि जहां से पर्यटकों को सूर्यास्त का अद्भुत दृश्य भी देखने को मिलता है। जैसलमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय (1688-1743) ने यहाँ एक बाँध बनवाया था, जिसके कारण जैसलमेर का काफी हिस्सा हरा भरा हो गया था। उनकी मृत्यु के बाद 1743 ई. में उनके पुत्र लूणकरण ने अपने पिता की छतरी यहाँ बनवाई थी। उसके बाद अन्य राजाओं की मृत्यु के बाद उनकी भी छतरियाँ यहाँ बनाई गईं।

जालोर के पर्यटन स्थल 

जालौर को ग्रेनाइट को नगरी भी कहा जाता है। 

जालोर किला

यहाँ के किले और महलों में ज्यादा सजावट देखने को नहीं मिलती है। यहाँ के सबसे प्रतापी शासक 'कान्हड़देव सोनगरा' हुए हैं, जिन्होंने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के कई बार दांत खट्टे किए। खिलजी ने कान्हड़देव से बदला लेने के लिए कई दाँव-पेंच लगाए, परन्तु अन्त में वह कान्हड़देव और उनके पुत्र वीरमदेव की वीरता का कायल हो गया। शहर का मुख्य आकर्षण जालोर का किला है। यह वास्तुकला का एक प्रभावशाली प्रतीक है और माना जाता है कि 8वीं और 10वीं शताब्दियों के बीच इसका निर्माण किया गया था। किला लगभग 336 मीटर की ऊँचाई पर खड़ी पहाड़ी के ऊपर स्थित है और नीचे शहर का अति सुदर दृश्य पेश करता है। किले की मुख्य विशेषताएं इसकी ऊँची दीवारें और गढ़ हैं।

सुंधा माता मंदिर, जालोर 

अरावली रेंज में सुंधा पर्वत के ऊपर स्थित, सुंधा माता मंदिर है। यह मंदिर समुद्र तल से ऊपर 1220 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया है और पूरे भारत के भक्तों द्वारा बहुत पवित्र माना जाता है। यहाँ चामुंडा देवी की एक प्रतिमा है। मंदिर के सफेद संगमरमर के बने खंभे माउंट आबू के दिलवाड़ा मंदिर की याद दिलाते हैं। इस मंदिर में ऐतिहासिक महत्त्व के कुछ शिलालेख भी हैं।

मलिक शाह की मस्जिद, जालोर

अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर में अपने शासन के दौरान, बगदाद के सुल्तान मलिक शाह के सम्मान में यह मस्जिद बनवाई थी। यह मस्जिद अपनी अनूठी स्थापत्यकला के लिए प्रसिद्ध है। इसकी बनावट, गुजरात में बने भवनों से काफी प्रभावित है।

झालावाड़ के पर्यटन स्थल 

गागरोन का किला, झालावाड़

यहाँ के शासक 'अचलदास खींची' जब मालवा के शासक होशंगशाह से हार गए थे तो यहाँ की राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मनों से बचाने के लिए जौहर कर लिया था। 'यूनेस्को' की विश्व धरोहर स्थल सूची में सम्मिलित छः पहाड़ी किलों में से एक, पहाड़ी और जल किले का प्रतीक गागरोन किला राजस्थान की शान है। आहू, काली सिंध नामक नदियों से घिरे इस किले की भव्य सुन्दरता को अपलक निहारने का मन करता है। किले के बाहर 'सूफी संत मिट्ठेशाह' के मकबरे पर मोहर्रम के महीने में वार्षिक मेले का आयोजन होता है। गागरोन किले का निर्माण बीजलदेव ने 12वीं सदी में करवाया था। तीन नदियों का संगम देखने के लिए यहाँ पर्यटक आते हैं।

भवानी नाट्यशाला, झालावाड़

इसका निर्माण 1921 ई. में हुआ था। यह नाट्यशाला, कई यादगार नाटकों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मूक गवाह है। माना जाता है कि सम्पूर्ण विश्व में ऐसी सिर्फ आठ नाट्यशालाएं हैं। शेक्सपियर के लिखे नाटक यहाँ खेले जाते थे। विदेशी पर्यटक इसे देखने में बड़ी रूचि रखते हैं। यह नाट्यशाला नाट्य और कला जगत में स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें घोड़ों और रथों के मंच पर प्रकट होने का रास्ता, एक भूमिगत मार्ग द्वारा बनाया गया है जो इसकी अनूठी विशेषता है।

सूर्य मंदिर, झालावाड़

झालावाड़ का जुड़वां शहर है झालरापाटन, जिसे 'सिटी ऑफ बैल्स' यानि घंटियों का शहर भी कहा जाता है। यहाँ पर बहुत से मंदिर होने के कारण सुबह शाम मंदिरों की घंटियों की स्वर लहरी सुनाई देती है। 10वीं शताब्दी में बना 17 फीट ऊँचा भगवान शिव को समर्पित सूर्य मंदिर, झालरापाटन के सर्वाधिक मनोहारी मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का शिखर पद्मनाभ या सूर्य मंदिर के रूप में लोकप्रिय उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर के समान उत्कीर्ण किया गया है। यहाँ की आदमकद मूर्तियों को देखकर पर्यटक हतप्रभ रह जाते हैं।

बौद्ध गुफाएं और स्तूप, झालावाड़

झालावाड़ में सबसे प्रसिद्ध, कोल्वी गाँव की प्राचीन बौद्ध गुफाएं हैं। गुफाओं में सबसे प्रभावशाली है बुद्ध की विशाल प्रतिमा और उत्कीर्णित स्तूप संरचना। झालावाड़ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये भारतीय कला के सर्वश्रेष्ठ जीवंत नमूने माने जाते हैं। पर्यटक, विनायक और हतियागौर गांवों के पास की गुफाओं का भी अवलोकन कर सकते हैं।

शेखावाटी के पर्यटन स्थल (सीकर, झुंझुनूं और चूरू)

ताल छापर अभयारण्य

ताल छापर में उछलते कूदते, अठखेलियाँ करते, छोटे छोटे मृग शावक यानि हिरण के बच्चे पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। काले हिरण की यह सैंचुअरी छापर गाँव में है, जो कि जयपुर से 210 कि.मी. दूर चूरू की सुजानगढ़ तहसील में है। काले हिरण का यह अभयारण्य, खुले मैदान, बड़े पेड़ों तथा लताओं से आच्छादित है। यहाँ हिरणों के साथ, रेगिस्तानी लोमडी, जंगली बिल्ली को भी देखा जा सकता है। पक्षी प्रेमियों के लिए भी यहाँ पर चील, आइबीज, दक्षिण यूरोप और मध्य एशिया में पाए जाने वाले सारस, क्रेन, चकवा, कबूतर आदि देखने को मिलते हैं।

मंडावा

प्राचीन समय में मध्यपूर्व और चीन के मध्य का प्राचीन व्यापारिक मार्ग का एक मुख्य केन्द्र था मंडावा। यहाँ से सामान का आदान-प्रदान किया जाता था। यहाँ के ठाकुर नवल सिंह ने नवलगढ़ और मंडावा पर शासन किया। मंडावा में एक किला बनवाया तथा किले के चारों तरफ नगर बसाया। यहाँ अनेक बड़े व्यापारी आकर बस गए, जिन्होंने अनूठी, अद्भुत, अजब-गजब हवेलियों की नींव रखी और इस नगर को पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र बना दिया। इस किले के भित्ति चित्र, काँच का काम तथा आकर्षक मेहराबदार द्वार, भगवान कृष्ण के चित्रों से शोभायमान हैं।

खेतड़ी महल

'झुझंनू का खेतड़ी महल' कला और वास्तु संरचना के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है। इसे झुझंनू के हवा महल के रूप में भी जाना जाता है। 1770 ई. में इस महल का निर्माण हुआ था। आश्चर्यजनक तथ्य है कि खेतड़ी महल में कोई झरोखे या द्वार नहीं है फिर भी इसे हवा महल के नाम से जाना जाता है। खेतड़ी महल का अनोखापन, हवा के अबाध प्रवाह हेतु व्यवस्थित रूप से बनाये गये भवनों के निर्माण के कारण है। महल के लगभग सभी कक्षों में सुव्यवस्थित स्तम्भ और मेहराब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं जो कि किले को शानदार समृद्ध रूप प्रदान करते हैं।

श्रद्धानाथ जी का आश्रम (लक्ष्मणगढ़)

अमृतनाथ जी महाराज की शिष्य परम्परा के संत श्री श्रद्धानाथजी द्वारा स्थापित यह आश्रम लक्ष्मणगढ़ (सीकर) के रेल्वे स्टेशन के पास स्थित है। इस आश्रम में श्रद्धानाथ जी के साधनामय जीवन की झाँकी श्रद्धालुओं को देखने को मिलती है। यह आश्रम नाथ सम्प्रदाय का एक प्रमुख केन्द्र है।

हजरत कमरूद्दीन शाह की दरगाह

नेहरा पहाड़ की तलहटी में खेतड़ी महल के पश्चिम में स्थित कमरूद्दीन शाह की दरगाह एक खुला व्यवस्थित परिसर है, जिसमें मस्जिद और मदरसा है (यहाँ प्राचीन भित्ति चित्र अभी भी देखे जा सकते हैं), इनके मध्य में सूफी संत कमरूद्दीन शाह की अलंकृत दरगाह है।

नवलगढ़

झुंझनू और सीकर के बीच स्थित, नवलगढ़ अपनी सुन्दर हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कई फिल्मों की शूटिंग भी की गई है, जिसमें कुछ भारतीय तथा कुछ विदेशी फिल्में भी हैं। यहाँ का आकर्षक किला ठाकुर नवल सिंह ने बनवाया था तथा इसके पास स्थित रूप निवास, उद्यान तथा फव्वारों से सुशोभित है।

लक्ष्मणगढ़ किला

लक्ष्मणगढ़ नगर में यह किला गौरवशाली स्थापत्य का नमूना है। पूरे विश्व में यह स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है जो कि यहाँ बिखरी चट्टानों के टुकड़ों को संजोकर बनाया गया था। इसके शिखर पर चढ़कर नीचे बसे लक्ष्मणगढ़ का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

फतेहपुर

फतेहपुर शहर कायमखानी नवाब फतेह मोहम्मद ने 1508 ईस्वी में स्थापित किया था। उन्होंने 1516 ई. में फतेहपुर के किले का निर्माण करवाया। यह शहर एक समय सीकर की राजधानी के रूप में भी जाना गया था। आज फतेहपुर शेखावाटी की लोकप्रिय सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जाता हैं। यहाँ अनेक दर्शनीय जगह है, जिनमें से द्वारकाधीश मंदिर, सिंघानिया हवेली, नादिन ल प्रिंस कल्चरल सेंटर और फतेहचंद की हवेली उल्लेखनीय हैं।

जोधपुर के पर्यटन स्थल 

मेहरानगढ़ किला, जोधपुर

आज इस किले की तारीफ पूरी दुनियां में की जाती है। इसका संरक्षण, समृद्धि, मजबूती और रख रखाव अतुलनीय है। जोधपुर के क्षितिज पर शोभायमान 125 मीटर ऊँची सीधी पहाड़ी पर अभेद्य मेहरानगढ़ किला है। यह ऐतिहासिक किला भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय किलों में से एक हैं। यह इतिहास और किंवदंतियों में सदा जीवित रहा है। मेहरानगढ का किला आज भी जयपुर की सेनाओं द्वारा इसके दूसरे द्वार पर किये गए तोप के हमले की गवाही देता है। किला अपने उत्तम मेहराबदार झरोखों, नक्काशीदार पट्टिकाओं, सजावटयुक्त द्वारों और मोती महल, फूल महल और शीश महल की चित्रित दीवारों के लिए जाना जाता है।

जसवंत थड़ा, जोधपुर

19वीं शताब्दी के अंत में निर्मित श्वेत संगमरमर का आकर्षक स्मारक, जसवंत सिंह द्वितीय को समर्पित है। इसका निर्माण उनके उत्तराधिकारी सरदार सिंह ने करवाया था। इसे 'राजस्थान का ताजमहल' भी कहा जा सकता है।

मण्डोर, जोधपुर

इस स्थान का प्राचीन नाम माण्डवपुर था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करता था। एक किंवदंती के अनुसार, रावण का ससुराल यहीं था। यहाँ सदियों से होली के दूसरे दिन रावण का मेला लगता है। मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मण्डोर जोधपुर के उत्तर में स्थित है। इस क्षेत्र का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है। यहाँ जोधपुर के पूर्व शासकों के स्मारक एवं छतरियां हैं। राजस्थान स्थापत्य कला से बनी परम्परागत छतरियों की अपेक्षा यह हिन्दू मंदिरों की संरचना पर आधारित है।

कायलाना झील, जोधपुर

जैसलमेर रोड़ पर कृत्रिम झील कायलाना, एक सुंदर पिकनिक स्थल है। कैनवास के चित्र जैसी दिखती इस झील की रमणीयता अविस्मरणीय है। आर.टी.डी.सी. के माध्यम से झील में विहार हेतु नौकायन सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

माचिया सफारी उद्यान, जोधपुर

जैसलमेर मार्ग पर कायलाना झील से लगभग 1 किलोमीटर दूर माचिया सफारी उद्यान स्थित है। यह एक पक्षीविहार है। यहाँ हिरण, रेगिस्तान की लोमड़ियां, विशाल छिपकली, नीलगाय, खरगोश, जंगली बिल्लियां, लंगूर, बंदरों जैसे कई पशु पाये जाते हैं। उद्यान सूर्यास्त के दृश्य के लिए भी सुविख्यात है।

बालसमंद झील, जोधपुर

जोधपुर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर मंडोर रोड पर बालसमंद झील स्थित है। इसका निर्माण 1159 ईस्वी में मंडोर के एक जलस्रोत हेतु किया गया था। बाद में बालसमंद झील के किनारे पर एक ग्रीष्म महल निर्मित किया गया। यह हरे-भरे बागानों से घिरा हुआ है। पशु और पक्षियों जैसे लोमड़ी और मोर भी यहाँ पाए जाते हैं। यह झील अब पर्यटकों और स्थानीय लोगों का एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है।

करौली के पर्यटन स्थल 

कैला देवी मन्दिर, करौली

करौली के बाहरी इलाके में लगभग 25 किमी दूरी पर कैला देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जो कि त्रिकुट पर्वत की घाटी में कालीसिल नदी के किनारे पर बना हुआ है। यह मन्दिर देवी के नौ शक्ति पीठों में से एक माना जाता है तथा इसकी स्थापना 1100 ईस्वी में की गई थी, ऐसी मान्यता है। कैला देवी मन्दिर में प्रतिवर्ष हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। यहाँ हनुमान जी का मन्दिर भी है, जिसे यहाँ के लोग 'लांगुरिया' नाम से पुकारते हैं।

श्री महावीर जी मंदिर, करौली

उन्नीसवीं सदी में बना, बेजोड़ वास्तुशिल्प की संरचना है, श्री महावीर जी का मंदिर, जो कि एक जैन तीर्थस्थल है। प्रत्येक वर्ष यहाँ चैत्र शुक्ल त्रयोदशी से वैशाख कृष्णा प्रतिपदा तक (मार्च-अप्रैल), एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों जैन श्रद्धालु आते हैं।

मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, करौली

करौली के एक गांव मेहंदीपुर में बालाजी, यानि हनुमान जी के मंदिर की काफी दूर दूर तक मान्यता है। मान्यता के अनसार पागल और बीमार लोग यहाँ लाए जाते हैं और बालाजी के आशीर्वाद से अधिकतर ठीक होकर जाते हैं।

कोटा के पर्यटन स्थल 

कोटा बैराज

कोटा बैराज, राजस्थान राज्य में चंबल नदी पर निर्मित सबसे महत्त्वपूर्ण जल संग्रह स्थलों में से एक है। वर्षा ऋतु में इसके बड़े फाटकों के माध्यम से तेज प्रवाह युक्त जलधारा के मनमोहक दृश्य को देखने के लिए पर्यटक लालायित रहते हैं। बैराज के पास भगवान शिव का 'कंसुआ मंदिर' एक दर्शनीय स्थल है, जहाँ एक दुर्लभ चौमुखी शिवलिंग स्थापित है।

मुकुंदरा बाघ अभयारण्य, कोटा

कोटा से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर रावतभाटा मार्ग पर सेलझर तथा कोलीपुरा गिरधपुरा होते हुये दर्रा गांव तक तथा कोटा से 50 किमी झालावाड़ रोड़ पर दर्रा गांव से कोलीपुरा सेलझर तक इस बाघ अभयारण्य का दृश्यावलोकन किया जा सकता है। यह अभयारण्य सघन वन क्षेत्र है। यहां पैंथर, भालू, हिरण, जंगली सूअर, लोमड़ी, सियार तथा काफी संख्या में देशी एवं प्रवासी पक्षियों को देखा जा सकता है।

जगमंदिर महल, कोटा

कोटा महाराव दुर्जनशाल सिंह जी की महारानी तथा उदयपुर की राजकुमारी ब्रज कंवर जी ने इस कृत्रिम जलाशय किशोर सागर तथा जगमंदिर का निर्माण 1743-45 ई. के मध्य करवाया गया था। किशोर सागर कोटा शहर के मध्य स्थित है। यहाँ पर पर्यटकों हेतु पावर मोटर बोट, जैट स्की तथा बच्चों हेतु अन्य जल क्रीड़ाओं में वाटर जोरबिंग बॉल, बनाना बोट आदि की सुविधा उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त यहाँ पर सांयकाल लेजर फिल्म एंड साउंड शो का आयोजन किया जाता है। यह स्थान कोटा का प्रमुख पर्यटन स्थल है।

अभेड़ा महल, कोटा

अभेड़ा महल का निर्माण 18 वीं शताब्दी में कराया गया था। यहाँ महल शाही आरामगाह की दृष्टि से कोटा से 8 किमी की दूरी पर निर्मित करवाया गया था, जिसमें राजकुमारी धीरदेह द्वारा पानी का कृत्रिम जलाशय निर्मित करवाया गया था, जिससे ज्यादा से ज्यादा वन्य जीव व पक्षी इस ओर आकर्षित हो सकें। महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय के शासनकाल में इस जलाशय में मगरमच्छ की विभिन्न प्रजातियों को पाला जाता था तथा अभेड़ा का तालाब इसी के कारण प्रसिद्ध था।

नागौर के पर्यटन स्थल 

लाडनूं, नागौर

लाडनूं में बनी साड़ियाँ, पूरे भारत में कॉटन की साड़ियों में बेहतरीन क्रिम की मानी जाती हैं तथा इनके चटक रंग और मुलायम कपड़े के लिए पसन्द की जाती हैं। जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण केन्द्र और अहिंसा एवं करूणा का आध्यात्मिक केन्द्र माना जाने वाला लाडनूं, 10वीं सदी में बसाया गया था। इसका अपना एक समृद्ध इतिहास है। जैन धर्म, आध्यात्मिकता और शुद्धि का प्रतीक जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय एक प्रसिद्ध शिक्षा का केन्द्र भी है। विश्व विख्यात संत आचार्य श्री तुलसी लाडनूं के ही थे।

बड़े पीर साहब दरगाह, नागौर

सुप्रसिद्ध पवित्र स्थान होने के कारण, नागौर में बड़े पीर साहब की दरगाह को 17 अप्रैल 2008 को एक संग्रहालय के रूप में भी दर्शनार्थ खोला गया था। दरगाह में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और लोकप्रिय दर्शन योग्य सुशोभित वस्तु, यहाँ पर रखा गया "कुरान शरीफ" है, जिसे हजरत सैयद सैफुद्दीन अब्दुल जीलानी द्वारा सुनहरी स्याही में लिखा गया था। इसके साथ ही उनकी छड़ी और पगड़ी भी दर्शनीय है। यहाँ पर दर्शक, पुराने भारतीय सिक्के, जो कि सन् 1805 के हैं, देख सकते हैं तथा इसके साथ ही अब्राहम लिंकन की छवि के साथ अमेरिकन सिक्के भी यहाँ देखे जा सकते हैं।

झोरड़ा - नागौर

नागौर तहसील में स्थित झोरड़ा एक छोटा सा गांव है, प्रसिद्ध सूफी संत 'बाबा हरिराम' की जन्म स्थली होने के कारण काफी प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष हिन्दी माह भाद्रपद की चतुर्थी और पंचमी के अवसर पर झोरड़ा में लगभग एक दो लाख श्रद्धालु आते हैं। यहाँ आने वाले लोगों में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यू. पी. सभी जगह के लोग यहाँ गांव में प्रत्येक वर्ष होने वाले बड़े सालाना मेले में आते हैं। इस गांव में बाबा हरिराम मंदिर होने के साथ ही इन संत के जीवन से सम्बन्धित बहुत सारी स्मरणीय तथा दर्शन करने योग्य वस्तुएं रखी हुई हैं।

पाली के पर्यटन स्थल 

रणकपुर जैन मंदिर, पाली

प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच, घाटियों से घिरा यह भव्य मंदिर, जैन समुदाय के लिए बड़ा तीर्थस्थल है। हीरे जैसे चमकते और तराशे गए यह मंदिर अलौकिक, अद्भुत और अद्वितीय हैं। एक जैन व्यापारी के पास दिव्य दृष्टि होने की मान्यता के बाद 15वीं शताब्दी में निर्मित, रणकपुर जैन मंदिर आदिनाथ को समर्पित है, राज्य के शासक राणा कुंभा ने इन मंदिरों के निर्माण को प्रोत्साहन दिया। उल्लेखनीय है कि यह अनेक मंदिरों का एक परिसर है न कि मात्र एक मंदिर।

जवाई बांध, पाली

लूणी नदी की सहायक नदी (जवाई) पर निर्मित, जवाई बांध का निर्माण जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह ने करवाया था। यह पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बांध माना जाता है। जोधपुर शहर और आस पड़ौस के गाँवों के लिए पानी का एक प्राथमिक स्रोत होने के अलावा, सर्दियों में जवाई बांध प्रवासी पक्षियों, तेंदुए और मगरमच्छ के लिए स्वर्ग है।

बीकानेर के पर्यटन स्थल 

देशनोक - करणी माता मंदिर, बीकानेर

दुनियां भर में चूहों के लिए अपनी पहचान बनाने वाला यह मंदिर, बीकानेर से 30 कि.मी. की दूरी पर, देशनोक गाँव में है। यह पर्यटकों में 'टैम्पल ऑफ रैट्स' के नाम से मशहूर है। एक किंवदंती के अनुसार करणी माता के सौतेले बेटे लक्ष्मण की एक तालाब में डूबने से मृत्यु हो गई। करणी माता ने यमराज से उन्हें जीवित करने के लिए प्रार्थना की। यमराज ने मना कर दिया फिर इस शर्त पर मान गए कि उस दिन के बाद से लक्ष्मण तथा करणी माता के सभी वंशज, चूहे के रूप में जिन्दा रहेंगे। हजारों चूहों को पवित्र मानकर, मन्दिर में भक्त लोग लड्डू व दूध की बड़ी परातें चढ़ाते हैं, जिन्हें चूहे खाते व पीते हैं। गर्भगृह में करणी माता की मूर्ति स्थापित है। करणी माता मंदिर का द्वार सफेद संगमरमर से बनी एक सुन्दर संरचना है। दूर-दूर से पर्यटक इस मन्दिर को देखने आते हैं। नए दूल्हा-दुल्हन यहाँ माता का आशीर्वाद लेने आते हैं।

राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर

शिक्षाविद एवम् शोधकर्ताओं का यहाँ जमावड़ा रहता है। यहाँ संरक्षित प्राचीन प्रशासनिक रिकॉर्ड, जो कि मुगलकाल के समय के भी हैं, जिनमें अरबी, फारसी के फरमान, निशान और हस्तलिखित ग्रन्थ भी शामिल हैं, इस अभिलेखागार में संरक्षित व सुरक्षित रखे हैं। राजस्थान की लगभग सभी रियासतों के शासनकाल के दौरान किए गए कार्यों व जारी किए आदेशों के रिकॉर्ड भी यहाँ मिल सकते हैं। बीकानेर का यह अभिलेखागार अत्यन्त असाधारण तथा महत्त्वपूर्ण है।

जूनागढ़ किला, बीकानेर

इस किले को कभी कोई शत्रु नहीं जीत पाया। सन् 1589 में सम्राट अकबर के सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित सूबेदार, राजा रायसिंह द्वारा बनाया गया यह किला पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसमें बने लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर के शानदार महल, प्रांगण, बालकनियाँ, छतरीनुमा मंडप तथा खिड़कियाँ, अपनी अदभुत कला को दर्शाती हैं।

लालगढ़ पैलेस और म्यूजियम, बीकानेर

महाराजा गंगासिंह ने 1902 ई. में, इस भव्य राजमहल का निर्माण, अपने स्वर्गीय पिता महाराजा लाल सिंह की स्मृति में करवाया था। इसके वास्तुशिल्प की रूपरेखा की अवधारणा, एक अंग्रेज वास्तुविद् 'सर स्विंटन जैकब' द्वारा की गई थी। यह महल पूरी तरह से लाल बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया है तथा राजपुताना, इस्लामी तथा यूरोपीय वास्तुकला के मिश्रण से इसे मूर्तरूप प्रदान किया गया। वर्तमान में इस पैलेस को हैरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। कुछ हिस्सा, बीकानेर के राज परिवार के निवास के रूप में है। इसी पैलेस के एक हिस्से में श्री सार्दुल म्युज़ियम है।

कोलायत, बीकानेर

हिन्दुओं का महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान, जहाँ हर साल दूर दूर से श्रद्धालु, मंदिर में दर्शन को आते हैं। कोलायत एक पवित्र झील है, जो बीकानेर से करीब 50 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ का इतिहास सांख्य योग के प्रणेता कपिल मुनि की कहानी सुनाता है, जो इस जगह के शांतिपूर्ण वातावरण से इतने अभिभूत हो गए थे कि उन्होंने अपनी उत्तर पश्चिम की यात्रा को बीच में रोक दिया और संसार के चक्र से मुक्ति पाने के लिए, यहीं तपस्या करने लगे। यहाँ स्थित मंदिर, घाट और पवित्र झील भक्तों को आमंत्रित करते हैं।

कतरियासर, बीकानेर

जयपुर रोड पर, इस गाँव का ग्रामीण और सांस्कृतिक जीवन बड़ा समृद्ध है। कतरियासर में बालू रेत के टीले और उन पर ढलती शाम के सूरज की रोशनी देख कर लगता है, पूरी धरती पर सोना बिखरा पड़ा है। यहाँ पर्यटक भारी संख्या में आते हैं तथा रेत के धोरों पर 'जसनाथ जी का अग्निनृत्य' देख कर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यहाँ पर रेगिस्तानी लोमड़ी, खरगोश, चिंकारा, मोर, तीतर, बटेर और चकोर के झुंड दिखाई देते हैं। बीकानेर से 45 कि.मी. की दूरी पर, कतरियासर एक साफ सुथरा और समृद्ध गाँव है।

राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर

एशिया का अपनी तरह का एकमात्र केन्द्र, जहाँ ऊँटों का रख रखाव, उन पर अनुसंधान और प्रजनन सम्बन्धित कार्य सम्पन्न होते हैं। शहर से 8 कि.मी. दूर यह केन्द्र 2000 एकड़ से अधिक भूमि पर बना है तथा इसका संचालन भारत सरकार द्वारा किया जाता है।

राजसमंद के पर्यटन स्थल 

कुम्भलगढ़ का किला, राजसमंद

मेवाड़ के सशक्त, सबल और प्रसिद्ध योद्धा राणा प्रताप की जन्मस्थली उदयपुर से उत्तर की तरफ, लगभग 84 कि.मी. दूरी पर जंगलों के बीच मेवाड़ क्षेत्र में चित्तौड़गढ़ के बाद दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण किला है कुम्भलगढ़। राणा कुम्भा द्वारा 15वीं शताब्दी में बनवाया गया यह किला अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसा है। मेवाड़ को शत्रुओं से बचाने व सुरक्षित रखने में इस किले की मुख्य भूमिका रही है। जब बनबीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर, चित्तौड़ किले पर कब्जा कर लिया था तो मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह को उनके बाल्यकाल में इसी किले में पनाह मिली थी। महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने के कारण लोगों की भावनाएं इस किले से जुड़ी हैं। कुम्भलगढ़ का किला अति सुन्दर विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है। किले की दीवारें इतनी मजबूत तथा इतनी चौड़ी हैं कि आठ घुड़सवार एक साथ उस पर चल सकते हैं और लगभग 36 कि.मी. के क्षेत्र में फैली हुई हैं। 19वीं शताब्दी में महाराणा फतेह सिंह द्वारा इस किले का नवीनीकरण किया गया था।

राजसमन्द झील

विश्व युद्ध के दौरान, राजसमन्द झील को लगभग छः वर्षों तक 'इम्पीरियल एयरवेज़' द्वारा समुद्री विमान आधार के रूप में उपयोग में लिया जाता था। राजसमन्द झील को राजस्थान में सबसे पुराने राहत कार्यों में से एक माना जाता है तथा इस कार्य के लिए उस समय लगभग चालीस लाख रूपए खर्च किए गए थे। इस झील की परिधि 22.5 स्कवेयर कि. मी., गहराई तीस फीट तथा जल ग्रहण क्षेत्र (तालाब) लगभग 524 स्कवेयर कि.मी. के दायरे में है। इतनी लम्बी चौड़ी परिधि में फैली होने के बावजूद भी यह माना जाता है कि यह झील भीषण तथा व्यापक रूप से फैले सूखे के समय में सूख जाया करती है जैसे कि सन् 2000 में सूखा पड़ने के कारण यह एक विशाल घाटी की सूखी सतह और दरारों भरे कीचड़ के समान बन गई थी।

हल्दी घाटी, राजसमंद

यह स्थान मेवाड़ के महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है तथा उदयपुर से 40 कि.मी. की दूरी पर है। इस घाटी की मिट्टी हल्दी के रंग जैसी पीली है, इसीलिए इसका यह नाम पड़ा। हल्दीघाटी अरावली की पहाड़ियों में स्थित है। सन् 1576 में हुए युद्ध में महाराणा प्रताप के गौरव और शौर्य को दर्शाने वाली हल्दीघाटी के पास बलीचा में उनके प्रिय घोड़े चेतक की समाधि भी स्थित है।

सवाई माधोपुर के पर्यटन स्थल 

रणथम्भौर किला, सवाई माधोपुर 

यह किला, रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र के अन्दर है। किले के तीन तरफ पहाड़ों की प्राकृतिक खाई बनी हुई है, जो इसे मजबूत और अजेय बनाती है। ऐसा माना जाता हैं कि इसका निर्माण चौहान राजा 'रणथंबन देव' द्वारा किया गया था। खानवा युद्ध में घायल राणा सांगा को भी इलाज के लिए इसी दुर्ग में लाया गया था। रणथम्भौर का यह उल्लेखनीय किला चौहान शासकों द्वारा दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया था। एक आदर्श सामरिक स्थान होने के कारण यह दुश्मन को खाड़ी में रोके रखने के लिए उपयुक्त था। मुस्लिम आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले की घेराबन्दी की थी। तब ये किला राजघराने की महिलाओं के 'जौहर' की ऐतिहासिक घटना का साक्षी बना। किले की विशेषता यहां के मंदिर, जलाशय, विशाल द्वार और सुदृढ़ प्राचीरों में दिखाई पड़ती है।

सिरोही के पर्यटन स्थल 

गुरू शिखर, सिरोही

अरावली की पहाड़ियों का सबसे ऊँचा शिखर गुरू-शिखर की चोटी है। आध्यात्मिक कारणों तथा साथ ही, 1722 मीटर समुद्रतल से ऊपर गुरू शिखर से माउण्ट आबू का विहंगम दृश्य देखने के लिए, प्रकृति की छठा को निहारने के लिए गुरू शिखर की यात्रा अनुपम है। गुरू शिखर पर चढ़ने से पहले, भगवान दत्तात्रेय का मंदिर दिखाई देता है, जिसके लिए माना जाता है कि भगवान, ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने ऋषि आत्रे और उनकी पत्नी अनूसुइया को दत्तात्रेय के रूप में एक पुत्र प्रदान किया था। वैष्णव समुदाय के लिए यह एक तीर्थ स्थल है।

दिलवाड़ा जैन मन्दिर, सिरोही

पूरे विश्व में माउण्ट आबू के जैन मंदिरों की तीर्थ यात्रा महत्वपूर्ण मानी जाती है। बाहर से साधारण सा दिखने वाला यह मंदिर, भीतर पहुँचने पर पर्यटकों को अद्वितीय वास्तुशिल्प और इसमें की गई पत्थरों पर शानदार नक्काशी से अचम्भित कर देता है। इसकी आंतरिक सज्जा में कलाकारों की बेहतरीन कारीगरी दिखाई पड़ती है। इस मंदिर को 12वीं-13वीं शताब्दी में बनाया गया था तथा इसकी छतों, मेहराबों और खम्भों पर की गई कारीगरी को देखकर पर्यटक ठगे से रह जाते है। दिलवाड़ा के मंदिरों की अपरिभाषित सुन्दरता और मंदिर के आस पास का हरियाली से भरपूर शांत वातावरण लाजवाब है।

नक्की झील, सिरोही

माउण्ट आबू के मध्य में स्थित 'नक्की झीक' भारत की पहली मानव निर्मित झील है। लगभग 80 फुट गहरी और 1/4 मील चौड़ी इस झील को देखे बिना, माउण्ट आबू की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती। कई किंवदंतियों में से एक किंवदंती यह है कि इस झील को देवताओं ने अपने नाखूनों से खोद कर बनाया था इसी लिए इसका नाम नक्की (नख यानी नाखून) झील पड़ा। इसी नक्की झील के पास सन् 1948 में स्व० महात्मा गांधी की अस्थियों का कुछ अंश भी प्रवाहित किया गया था, जिसके बाद गांधी घाट का निर्माण किया गया। प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफर्स के लिए झील का साफ सुथरा नीला पानी, हरी भरी वादियां और चारों तरफ की प्राकृतिक छठा, रूमानी, कल्पित तथा अद्भुत अंश, स्वप्निल और तृप्त करने वाले हैं तथा इस आकर्षण भरे स्थल को देखने को बाध्य करते हैं।

टोंक के पर्यटन स्थल 

बीसलपुर (बांध), टोंक

राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के लिए जीवनदायिनी के रूप में पहचान बनाने वाला, बीसलपुर बांध एक गुरूत्व बांध है जो कि बनास नदी पर निर्मित किया गया है। यह राजस्थान के टोंक जिले के देवली कस्बे के पास है। इस बांध का निर्माण सन् 1999 में पूरा किया गया था तथा तभी से यह बांध राज्य के कई क्षेत्रों को पानी सप्लाई करने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है।

सुनहरी कोठी, टोंक

टोंक का मुख्य आकर्षण 19 वीं सदी की सुनहरी कोठी या गोल्डन मैन्शन है, जो नज़र बाग रोड पर बड़ा कुआँ के पास है। इमारत अपने बाहरी स्वरूप से साधारण लगती है, लेकिन इसके आंतरिक भाग की बहुरंगी स्वर्ण रंगों की शाही झलक, इसके नाम से मेल खाती है। शीश महल या सुनहरी कोठी का शीशे से शोभायमान कमरा, मीनाकारी कार्य के सर्वोत्कृष्ट नमूनों के साथ अद्भुत ग्लास और फूलों के अलंकरण की कारीगरी मंत्रमुग्ध करते हैं। 7 मार्च, 1996 को राजस्थान सरकार द्वारा सुनहरी कोठी को एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया गया है।

डिग्गी कल्याण जी मंदिर, टोंक

5600 वर्षों पूर्व का सबसे पुराना पूजनीय हिंदू मंदिरों में से एक श्री डिग्गी कल्याण जी मंदिर है। भगवान विष्णु के अवतार श्री कल्याण जी को माना जाता हैं। पूरे देश से लोग यहाँ अपने दुखों से मुक्ति और देवता के आशीर्वाद के लिए आते हैं। प्राचीन काल की शिल्प कौशल की गवाही देता यह मंदिर, टोंक से लगभग 60 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। मंदिर का भव्य शिखर 16 स्तम्भों पर आधारित है।

श्रीगंगानगर के पर्यटन स्थल 

श्रीगंगानगर को राजस्थान का अन्न भंडार भी कहते है। 

बुड्ढ़ा जोहड़ गुरूद्वारा, श्रीगंगानगर 

इस गुरूद्वारे का निर्माण 1954 ई. में बाबा फतेह सिंह की देखरेख में हुआ था। यहाँ हर माह की अमावस्या को मेला लगता है। कहा जाता है कि जत्थेदार बुड्ढासिंह की प्रेरणा से अधर्मी मस्सारंग का सिर काटकर इस गुरूद्वारे में लाया गया था, इसी कारण इस गुरुद्वारे को बुड्ढा जोहड़ा कहते हैं।

हिंदुमलकोट सीमा, श्रीगंगानगर 

गंगानगर में स्थित हिंदुमलकोट सीमा भारत और पाकिस्तान को अलग करती है। बीकानेर के दीवान हिन्दुमल के सम्मान में नामित और सीमा के पास स्थित यह पर्यटक आकर्षणों में से एक है। सीमा श्री गंगानगर से 25 किमी दूर स्थित है और यह प्रतिदिन प्रातः 10.00 से शाम 5.30 के बीच पर्यटकों के लिए खुली रहती है।

उदयपुर के पर्यटन स्थल

उदयपुर को झीलों की नगरी भी कहते है। 

पिछोला झील, उदयपुर

पिछोला झील का सौन्दर्य ढलती शाम के समय, सूर्य की लालिमा में सोने की तरह दमकता है। पिछोली गाँव के कारण झील को 'पिछोला' नाम दिया गया है। जगनिवास और जगमंदिर द्वीप इस झील में स्थित है। झील के पूर्वी किनारे पर सिटी पैलेस है। सूर्यास्त होने पर झील में नाव की सवारी, झील और सिटी पैलेस का मनमोहक दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करता है।

फतेह सागर झील, उदयपुर

पिछोला के उत्तर में, पहाड़ों और वन संपदा के किनारे स्थित यह रमणीय झील, एक नहर द्वारा पिछोला झील से जुड़ी एक कृत्रिम झील है। झील के मध्य सुंदर नेहरू गार्डन के साथ-साथ एक द्वीप पर उदयपुर की सौर वेधशाला भी है। इसे पहले 'कनॉट बान्ध' कहा जाता था क्योंकि इसका उद्घाटन ड्यूक ऑफ कनॉट के द्वारा किया गया था।

सहेलियों की बाड़ी, उदयपुर

सहेलियों की बाड़ी उदयपुर का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय द्वारा महिलाओं के लिए एक बगीचे के रूप में निर्मित किया गया था। एक छोटे से संग्रहालय के साथ इसमें संगमरमर के हाथी, फव्वारे, मण्डप और कमल कुण्ड जैसे कई आकर्षण हैं।

भारतीय लोक कला मंडल, उदयपुर

भारतीय लोक कला मंडल, उदयपुर का एक सांस्कृतिक संस्थान है जो राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की संस्कृति, त्यौहारों, लोक कला और लोकगीत के लिए समर्पित है। लोक संस्कृति के प्रचार के अलावा, यह एक संग्रहालय भी है जो राजस्थानी संस्कृति के विभिन्न स्वरूपों पर लोक कलाकृतियों का प्रदर्शन करता है।

नागदा, उदयपुर

छठी शताब्दी के अंश को समाहित किए, नागदा उदयपुर से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसा नागदा, जटिल नक्काशीदार "सहस्रबाहु मंदिर" के लिए प्रसिद्ध है जो कि आम लोगों में 'सास बहू मंदिर' के नाम से पहचाना जाता है। नवीं दसवीं शताब्दी में निर्मित किए गए इस मंदिर का वास्तुशिल्प अतुलनीय है तथा इसका तोरणद्वार अद्भुत बनाया गया है।

यह भी पढ़ें 

एक टिप्पणी भेजें

Cricket Telegram Channel