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राजस्थान के लोक नृत्य

राजस्थान के प्रमुख लोक नृत्य विस्तार से - राजस्थान का इतिहास और संस्कृति कक्षा 10वीं की किताब और उससे भी बढ़कर

लोक नृत्य क्या होते है यानि उनकी परिभाषा 

राजस्थान विभिन्न कलाओं के साथ साथ विभिन्न नृत्यों की रंगस्थली भी रहा है, इसलिए ही इसे रंगीला राजस्थान कहते है। सरल हृदय ग्रामीणों द्वारा आनंद और उत्साहपूर्वक लय के साथ अंगों के संचालन को 'देशी नृत्य' कहते है, इन्हें लोक नृत्य भी कहा जाता है। 

लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य में अंतर 

लोक नृत्य में शास्त्रीय नृत्य की तरह ताल, लय, आदि का सख्ती से पालन नहीं होता है। 

राजस्थान के लोक नृत्यों के प्रकार 

सुप्रसिद्ध कला मर्मज्ञ एवं उदयपुर के लोक कला मंडल के संस्थापक देवीलाल सामर ने राजस्थान के लोकनृत्यों को उनके प्रचलन वाले क्षेत्रों की भौगोलिक विशिष्टताओं के आधार पर तीन भागों में बनता है। 

  1. पहाड़ी 
  2. राजस्थानी 
  3. पूर्वी मैदानी 

कुछ ऐसे लोक नृत्य भी है जो राजस्थान के अंचल में अपनी विशेष पहचान बना गए जिनका वर्णन हम नीचे कर रहे है। 

राजस्थान के लोक नृत्य
राजस्थान के लोक नृत्य 

गेर नृत्य 

गैर मेवाड़ और बाड़मेर क्षेत्र का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इसमें होली के अवसर पर पुरुष लकड़ी की चिड़िया लेकर गोल घेरे में नृत्य करते है। गोल घेरे में नृत्य करने के कारण ही इसे गैर और गैर करने वाले को गेरये कहते है। 

मेवाड़ और बाड़मेर के गैर नृत्य की मूल रचना समान है किंतु इसमें चाल और मंडल बनाने की क्रिया में अंतर होता है। 

इस नृत्य में प्रयुक्त प्रमुख वाद्य यंत्र ढोलक, बांकिया और थाली है। 

गीदड़ नृत्य 

शेखावाटी क्षेत्र का प्रसिद्ध गीदड़ नृत्य होली के दिनों में एक सप्ताह तक चलता है। नगाड़े की चोट पर पुरुष अपने दोनों हाथों में डंडों को परस्पर टकराकर नृत्य करते है। यह विशुद्ध रूप से पुरुषों का नृत्य है। इस नृत्य में प्रयोग किए जानें वाले वाद्य यंत्र ढोल, ढप और चंग है। इसमें होली से संबंधित गीत गाए जाते है। 

कुछ पुरुष महिलाओं के कपड़े पहनकर इसमें भाग लेते है जिन्हें गणगौर कहा जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के स्वांग किए जाते है जिनमें साधु, शिकारी, सेठ-सेठानी, दुल्हा-दुल्हन, सरदार, पठान, पादरी, बाजीगर आदि प्रमुख है। 

कच्छी घोड़ी नृत्य 

कच्छी घोड़ी शेखावाटी तथा कुचामन, परबतसर, डीडवाना आदि क्षेत्रों का प्रमुख व्यावसायिक लोक नृत्य है। यह विवाह के अवसर पर किया जाता है। 

इसमें वाद्य यंत्र ढोल और थाली बजाई जाती है। नर्तक विरोचित वेशभूषा धारण करके तलवार हाथ में लेकर काठ व पकड़े से बनी घोड़ी पर सवार होकर नृत्य करता है। 

चंग नृत्य 

यह शेखावाटी क्षेत्र में होली के दिनों पुरुषों द्वारा किए जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य में प्रत्येक पुरुष चंग बजाते हुए वृत्ताकार नृत्य करते है फिर घेरे के मध्य में एकत्रित होकर धमाल और होली गीत गाते है। 

डांडिया नृत्य 

यह मारवाड़ का प्रसिद्ध लोक नृत्य है जो होली के बाद किया जाता है। बीस, पच्चीस पुरुषों की एक टोली दोनों हाथों में डांडिया लेकर वृत्ताकार नृत्य करती है। मैदान में चौक के बीच में शहनाई और नगाड़े वाले गवैए बैठते है। 

पुरुष लोक-खयाल और होली गीत लय में गाते है। इन गीतों में प्राय: बड़ली के भेरूजी का गुणगान होता है। राजा, बजिया, साधु, शिवजी, रामचंद्र, कृष्ण, रानी, सिंधीन, सीता आदि विभिन्न प्रकार की वेशभूषाएं पहनी जाती है। राजा का वेश मारवाड़ के प्राचीन नरेशों से मिलता जुलता होता है। 

अग्नि नृत्य 

जसनाथी संप्रदाय के प्रसिद्ध अग्नि नृत्य का उद्गम बीकानेर जिले के कतरियासर गांव में हुआ। इसके नर्तक जसनाथी संप्रदाय के जाट सिद्ध कबीले के लोग है। इस नृत्य में केवल पुरुष ही भाग लेते है। 

अंगारों के ढेर को धूणा कहते है। नर्तक अपने गुरु के सामने नाचते हुए फतैफतै कहते हुए धूणे में प्रवेश करते है। नर्तक अंगारों से मतीरा फोड़ना, हल जोतना आदि क्रियाएं सुंदर ढंग से प्रस्तुत करते है। आग के साथ राग और फाग का ऐसा अनूठा संगम अन्यत्र दुर्लभ है। 

घुड़ला नृत्य 

घुड़ला जोधपुर का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह केवल महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। इस नृत्य में स्त्रियां सिर पर एक छिद्रित मटके में जलता दीपक रखकर नृत्य करती हैं। इस मटके को घुड़ला कहा जाता है।

ढोल नृत्य 

ढोल नृत्य जालोर का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह विवाह के अवसर पर मुख्यतः ढोली और भील जाति के पुरुषों द्वारा किया जाता है। इस व्यावसायिक नर्तकों को पहचान राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास ने दिलाई। 

इसमें एक साथ चार या पाँच ढोल बजाये जाते हैं। ढोल का मुखिया इसे थाकना शैली में बजाना शुरू करता है। थाकना समाप्त होते ही कुछ पुरुष अपने मुंह में तलवार लेकर, कुछ हाथों में डंडे लेकर, कुछ भुजाओं में रूमाल लटकाकर और अन्य लयबद्ध नृत्य करना प्रारंभ कर देते हैं।

बम नृत्य

बम नृत्य भरतपुर व अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह नृत्य पुरुषों द्वारा फागुन की मस्ती व नई फसल आने की खुशी में किया जाता है। इसमें एक बड़े नगाड़े जिसे बम कहते हैं, को खड़े होकर दोनों हाथों में दो मोटे डंडे लेकर बजाया जाता है। नगाड़े के साथ थाली, चिमटा, ढोलक आदि वाद्ययंत्र प्रयुक्त होते हैं। 

घूमर नृत्य 

राज्य नृत्य के रूप में प्रसिद्ध घूमर मांगलिक अवसरों, पर्वो आदि पर महिलाओं द्वारा किया जाने वाला लोकप्रिय नृत्य है। लहंगे के घेर को जो वृत्ताकार रूप में फैलता है 'घुम्म' कहते हैं। इसमें ढोल, नगाड़ा, शहनाई आदि वाद्यों का प्रयोग होता है। इस नृत्य में बार-बार घूमने के साथ हाथों का लचकदार संचालन प्रभावित करने वाला होता है।

गरबा नृत्य 

गुजरात और राजस्थान की संस्कृति का समन्वय गरबा में दिखाई देता है। डूंगरपुर व बांसवाड़ा में इस नृत्य का अधिक प्रचलन है। यह नवरात्रि में दुर्गा की आराधना में किया जाता है। 

गरबा तीन रूपों में किया जाता है। प्रथम रूप शक्ति की आराधना का है जिसमें स्त्रियां मिट्टी के छिद्रित घड़े में दीपक प्रज्ज्वलित कर उसे सिर पर रखकर गोलाकार घूमती हुई नृत्य करती हैं। गरबा के दूसरे रूप रास नृत्य में राधा कृष्ण, गोप-गोपियों का प्रणय चित्रण प्रस्तुत किया जाता है। तीसरे रूप में लोक-जीवन के सौन्दर्य को प्रकट करने वाले प्रसंगों, यथा- पणिहारी, नववधू की भावुकता, गृहकार्य में लीन स्त्रियों क चित्रण होता है।

वालर नृत्य 

स्त्री-पुरुषों द्वारा किये जाने वाला 'वालर' सिरोही क्षेत्र के गरासियों का प्रसिद्ध नृत्य है। इस धीमी गति के नृत्य में किसी वाद्य का प्रयोग नहीं होता है। यह नृत्य अर्द्ध वृत में किया जाता है। दो अर्द्ध वृत्तों में पुरुष बाहर व महिलाएं अन्दर रहती हैं। नृत्य का प्रारम्भ एक पुरुष हाथ में छाता या तलवार लेकर करता है।

भवाई नृत्य 

राजस्थान के व्यावसायिक लोकनृत्यों में 'भवाई' अपनी नृत्य अदायगी, शारीरिक क्रियाओं के अद्भुत चमत्कार तथा लयकारी की विविधता के लिए अत्यधिक लोकप्रिय है। तेज लय में विविध रंगों की पगड़ियों से हवा में कमल का फूल बनाना, सात-आठ मटके सिर पर रखकर नृत्य करना, जमीन पर रखे रूमाल को मुँह से उठाना, गिलासों व थाली के किनारों तथा तेज तलवार व काँच के टुकड़ों पर नृत्य आदि इसकी विशेषता है। 

यह उदयपुर क्षेत्र में शंकरिया, सूरदास, बोटी, ढोकरी, बीकाजी और ढोलामारू नाच के रूप में प्रसिद्ध है। रूपसिंह शेखावत, दयाराम, तारा शर्मा इसके प्रमुख कलाकार है।

तेरहताली नृत्य 

कामड़ जाति तेरहताली नृत्य से बाबा रामदेवजी का यशोगान करती है। कामड़ स्त्रियां मेले व उत्सवों में तेरहताली का प्रदर्शन करती हैं। पुरुष साथ में मंजीरा, तानपुरा, चौतारा बजाते हैं। यह तेरह मंजीरों की सहायता से किया जाता है। नौ मंजीरे दायें पाँव पर, दो हाथों के दोनों ओर ऊपर कोहनी पर तथा एकङ्कएक दोनों हाथों में रहते हैं। हाथ वाले मंजीरे अन्य मंजीरों से टकराकर मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। 

मांगीबाई और लक्ष्मणदास तेरहताली के प्रमुख नृत्यकार है। 

क्या आप जानते है? 

कालबेलिया नृत्य को 2010 में यूनेस्को द्वारा अमूर्त विरासत सूची में शामिल किया गया। इस नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना गुलाबो ने इसे देश विदेश में पहचान दिलाई है। 

अन्य नृत्यों में नेजा, रमणी, युद्ध नृत्य, हाथीमना, घूमरा आदि भीलों के नृत्य हैं। घूमर, गौर, जवारा, मोरिया, लूर, कूद, मांदल आदि नृत् गरासियों के द्वारा किये जाते हैं। इण्डोनी, पणिहारी, बागड़िया, शंकरिया, चकरी आदि कालबेलियों के नृत्य हैं। चरी, झूमर आदि गुर्जरों तथा मछली नृत्य बंजारों द्वारा किया जाता है। चकरी, धाकड़, खंजरों के तथा शिकार नृत्य सहरिया जानकारी का लोक नृत्य है। मालवीया कथोड़ी जनजाति का नृत्य है। 

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