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बिजोलिया किसान आंदोलन के बारे में पूरी जानकारी और Notes

बिजौलिया किसान आंदोलन प्रथम चरण (1897 से 1914) द्वितीय चरण (1914 से 1923) तृतीय चरण (1923 से 1941)

बिजौलिया उस समय मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाणा था। जिसकी कहानी शुरू होती है खानवा के युद्ध से जब उत्तर प्रदेश के जगनेर से अशोक परमार राणा सांगा की तरफ से लड़ने के लिए आया तो राणा सांगा ने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर अशोक परमार को ऊपरमाल के पठार वाली जागीर दी जिसका मुख्यालय बिजौलिया था। 

उस समय बिजौलिया की जनसंख्या 13000 और इसमें 79 गांव थे जिसके एक गांव गिरधरपुरा से धाकड़ जाति के किसानों द्वारा आंदोलन प्रारंभ किया गया। 

आप सभी द्वारा पढ़ा गया मुंशी प्रेमचंद जी का रंगभूमी उपन्यास बिजौलिया पर लिखा हुआ है। 

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जैसा कि आपको पता है किसी भी आंदोलन को किसी न किसी कारण से किया जाता है तो आइए अब जानते है - 

बिजौलिया किसान आंदोलन के कारण 

  • किसानों पर लगने वाला 84 प्रकार का कर जिससे किसान परेशान हो गए थे। 
  • जमींदार द्वारा किसानों से बेगार करवाई जाती थी। 
  • लाग बाग से किसान परेशान थे 
  • लाटा कुन्ता की वजह से लगने वाले अत्यधिक भू राजस्व की वजह से भी किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो रही थी। 
  • चंवरी कर - लड़कियों की शादी में सामंत कृष्ण सिंह द्वारा ₹5 आना का चंवरी कर 1903 ईस्वी में लगाया गया था। 
  • तलवार बंधाई कर - कृष्ण सिंह का कोई बेटा नहीं था उनके गोद लिए गए पुत्र पृथ्वी सिंह ने 1906 ईस्वी में जनता पर तलवार बंधाई उत्तराधिकार कर लगा दिया। 

लाटा कुन्ता व्यवस्था - सामंत के लोग फसल को तोलकर कर नहीं लेते थे बल्कि खड़ी फसल का अनुमान लगाते थे और कर लेते थे। 

इसके अलावा सामंत की और भी कई दमनकारी नीतियों से परेशान होकर किसानों ने आंदोलन करने की सोची तो आइए जानते है पूरे आंदोलन के बारे में। 

बिजौलिया किसान आंदोलन का प्रथम चरण 1897 से 1914 तक 

आंदोलन की शुरुआत होती है एक गंगाराम नामक धाकड़ जाति के किसान के घर से जब गंगाराम के पिताजी की मृत्यु हुई तो उनके यहां मृत्यु भोज का कार्यक्रम चल रहा था। 

मृत्यु भोज में आए हुए लोगों ने आपस में सामंत के बढ़ते अत्याचार के खिलाफ बात करना शुरू की तभी वहां लाइब्रेरी अध्यक्ष साधु सीताराम दास आ गए। 

सीताराम दास ने किसानों से कहा अगर ठिकानेदार ज्यादा कर लेकर अत्याचार कर रहा है तो तुम सबकी उसकी शिकायत महाराणा से करनी चाहिए। 

साधु सीताराम दास की बात सुनकर गिरधरपुरा गांव वालों ने नानजी पटेल और ठाकरी पटेल नाम के दो किसानों को शिकायत करने के लिए मेवाड़ महाराणा फतेह सिंह जी के पास भेजा। 

महाराणा ने उनकी बात सुनकर जांच अधिकारी हामिद को नियुक्त किया लेकिन उसने सामंत के दबाव में आकर सही जांच नहीं की और कुछ हाल नहीं निकला। 

प्रथम चरण में अन्य नेता प्रेमचंद भील, फतेहकरण चरण और ब्रह्मदेव के नाम प्रमुख है। 

प्रथम चरण के आंदोलन के परिणाम 

  • प्रथम चरण में जांच अधिकारी हामिद ने सही काम नहीं किया तो सामंत पर भी इसका असर नहीं पड़ा और उसकी तानाशाही बढ़ती गई। 
  • सामंत को जब पता चला नानजी पटेल और ठाकरी पटेल मेरी शिकायत लेकर महाराणा के पास गए है तो सामंत ने इन दोनों को मेवाड़ से देश निकाला दे दिया। 

बिजौलिया किसान आंदोलन का द्वितीय चरण 1915 से 1923 तक 

दूसरे चरण में साधु सीताराम दास एक दूसरे क्रांतिकारी भूप सिंह गुर्जर के पास गए जो अपना नाम और वेश बदलकर यहां रह रहे थे और सीताराम दास जी ने आंदोलन का नेता उसी क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक को बना दिया। 

ऊपरमाल पंच बोर्ड 

विजय सिंह पथिक ने गांव वालों से पूंछा कि तुम्हारा कोई संगठन है सभी लोगों ने मना किया तो मास्टर साहब विजय सिंह पथिक ने किसानों को बेरीसाल गांव में हरियाली अमावस्या (सावन) के दिन संगठित किया और ऊपरमाल पंच बोर्ड को स्थापना की। 

इस ऊपरमाल पंच बोर्ड में कहीं 5 सदस्य तो कहीं 13 सदस्य होने की बात कही है इसके अध्यक्ष या सरपंच मन्ना पटेल थे। 

ऊपरमाल सेवा समिति 

इसकी स्थापना भी विजय सिंह पथिक ने की थी जिसका उद्देश्य युवाओं को ऊपरमाल क्षेत्र की सेवा के लिए संगठित करना और आंदोलन को आगे बढ़ाना था। 

इसके साथ ही विजय सिंह पथिक जी ने ऊपरमाल का डंका नाम का एक पर्चा या अखबार शुरू किया। 

माणिक्यलाल वर्ण का आगमन 

माणिक्य लाल वर्मा जो वर्तमान बिजौलिया सामंत का नौकर था वो विजय सिंह पथिक से प्रभावित होकर आंदोलन से जुड़ता है।

कांग्रेस और बिजौलिया आंदोलन 

साल 1919 ईस्वी में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में बिजौलिया किसान आंदोलन के साथ जुड़ने का प्रस्ताव बाल गंगाधर तिलक ने रखा लेकिन महात्मा गांधी ने इसे यह कहकर ठुकरा दिया कि वो सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करते है देशी राजाओं के खिलाफ नहीं। 

1920 ईस्वी के नागपुर अधिवेशन में किसानों ने फिर कांग्रेस के सामने मांगे रखी लेकिन गांधीजी ने आंदोलन में शामिल होने से तो इनकार कर दिया लेकिन अपने सचिव महादेव देसाई को आंदोलन की जांच के लिए बिजौलिया भेजा। 

सामंत ने भी दोनों साल बनाए जांच आयोग 

सामंत ने भी 1919 में जांच आयोग बनाया जिसके अध्यक्ष बिंदुलाल भट्टाचार्य और सदस्य अमर सिंह और अफजल अली थे जिन्होंने किसानों से बातचीत की लेकिन बात नहीं बनी। 

इसके बाद 1920 ईस्वी में सामंत ने फिर से एक जांच आयोग किसानों से बातचीत करने को भेजा इसके अध्यक्ष राज सिंह बेदला आए सदस्य तख्त सिंह मेहता और रमाकांत मालवीय थे। 

बिजौलिया आंदोलन में अंग्रेजों का हस्तक्षेप 

अखबरों में गांधीजी और आंदोलन की खबरें पढ़कर अंग्रेजों के राजपुताने के एजेंट टू गवर्नर जर्नल रॉबर्ट हॉलैंड को पता चली तो उसने मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट विलियम्स को इस मामले को देखने के लिए कहा। 

1922 का समझौता 

इस समझौते में 9 लोग शामिल हुए 3 अंग्रेजों की तरफ से और 2 राजा की तरह से और 4 आंदोलनकारी किसान नेता शामिल हुए। 

अंग्रेजों की तरह से एजेंट टू गवर्नर जर्नल रॉबर्ट हॉलैंड, मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट विलियम्स और रॉबर्ट हॉलैंड का सचिव अगालवी और राजा की तरफ से प्रभाष चंद्र चटर्जी और बिहारी दास इनके साथ किसान नेता माणिक्य लाल वर्मा, मोतीराम, नारायण पटेल और रामनारायण चौधरी ने समझौता किया। 

समझौते की शर्तें 

  • लोगों पर जो 84 प्रकार के कर लगते थे उनमें से 35 प्रकार के कर हटा दिए गए और सिर्फ 49 प्रकार के कर बचे। 
  • लाटा कुन्ता की व्यवस्था को समाप्त करके भूमि बंदोबस्त लागू करने की कही गई। 

द्वितीय चरण के आंदोलन का परिणाम 

इसके भी कुछ खास परिणाम नहीं निकले क्योंकि सामंत यानी जागीरदार ने इस समझौते को मानने से इनकार कर दिया और अपने यहां लागू नहीं होने दिया। 

इसके बाद ही 10 सितंबर 1923 को विजय सिंह पथिक को बेगू किसान आंदोलन में शामिल होने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। 

बिजौलिया किसान आंदोलन का तृतीय चरण 1923 से 1941 तक 

यह जब शुरू हुआ जब मेवाड़ के भूमि बंदोबस्त अधिकारी ट्रेंच ने असिंचित भूमि के कर भूमि बंदोबस्त के बाद बढ़ा दिए तो विजय सिंह पथिक के कहने पर किसानों ने असिंचित भूमि के पट्टे सामंत को लौटा दिए और सामंत ने उन पट्टों को जप्त कर लिया। 

गिरफ्तारी के बाद विजय सिंह पथिक 1927 में रिहा हुए तो उनके मेवाड़ प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो वे आंदोलन से हट गए। 

लेकिन इस बार आंदोलन को महात्मा गांधी का समर्थन मिला और उन्होंने अपने पांचवे पुत्र कहे जाने वाले जमनालाल बजाज जो कि राजपुताने के ही थे उनको आंदोलन की अध्यक्षता करने के लिए भेजा। 

लेकिन जमनालाल बजाज दिल्ली में कुछ काम से जा रहे थे तो उन्होंने मध्यप्रदेश के हरिभाऊ उपाध्याय को आंदोलन का नेता नियुक्त किया। 

1941 का समझौता 

इस समझौते ने मेवाड़ महाराणा की तरफ से प्रधानमंत्री वी. राघवाचारी और राजस्व मोहन सिंह मेहता शामिल हुए और किसानों की तरफ से नेता शामिल ना होकर किसान स्वयं शामिल हुए। 

इसमें किसानों की जप्त जमीन वापस कर दी गई और कर वापस कम कर दिए गए और आंदोलन समाप्त हो गया। 

बिजौलिया किसान आंदोलन का महत्व 

  • यह विश्व का सबसे ज्यादा लंबे समय तक चलने वाला शांतिपूर्ण और अहिंसक आंदोलन रहा। 
  • यह भारत का पहला संगठित किसान आंदोलन रहा। 
  • इसने राजस्थान को राष्ट्रीय आंदोलनों से जोड़ने का कार्य किया। 
  • यह आंदोलन राजस्थान के अन्य किसान आंदोलन के लिए प्रेरणा स्त्रोत्र कर कार्य करता रहा। 
  • इस आंदोलन में बाहरी धन का इस्तेमाल नहीं किया गया आंदोलन का संपूर्ण खर्चा किसानों ने चंदा इकठ्ठा करके उठाया। 

बिजौलिया किसान आंदोलन से जुड़ी खबरें छापने वाले समाचार पत्रों के नाम बताओ?

बिजौलिया आंदोलन से जुड़े समाचार पत्रों के नाम निम्नलिखित है
  • गणेश शंकर विद्यार्थी का समाचार पत्र प्रताप जो कानपुर से संपादित होता था। 
  • विजय सिंह पथिक के समाचार पत्र राजस्थान केसरी (वर्धा, महाराष्ट) और नवीन राजस्थान (अजमेर) से संपादित होते थे। 
  • अजमेर से ही एक और तरुण राजस्थान संचार पत्र जिसका संपादन रामनारायण चौधरी करते थे। 
  • बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार मराठा में इस आंदोलन का जिक्र किया था। 

बिजौलिया किसान आंदोलन में भाग लेने वाली प्रमुख महिलाओं के नाम बताइए?

बिजौलिया आंदोलन किसानों के साथ महिला सशक्तिकरण का भी उदाहरण है इसमें अंजना देवी चौधरी, नारायणी वर्मा और रमा देवी नाम की महिलाओं ने भी भाग लिया। 

बिजौलिया किसान आंदोलन के लिए गीत लिखने वाले लेखकों के नाम बताओ?

माणिक्य लाल वर्मा के पंछीडा और भंवरलाल जी के गीतों ने किसानों को आंदोलन के लिए प्रेरित किया। 

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