निरंजनी संप्रदाय का संस्थापक/प्रवर्तक संत कवि स्वामी हरिदास निरंजनी थे। इनका प्रमुख धाम/गद्दी/पीठ गाढा गांव नागौर में है। यह हिन्दू निर्गुण भक्ति धारा का संप्रदाय है
यह संप्रदाय वैष्णवी निरंजन नाम से पूरे भारत में विख्यात है इसे परशुराम चतुर्वेदी और पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल ने नाथ संप्रदाय और निर्गुण संप्रदाय की एक कड़ी माना है।
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निरंजनी संप्रदाय |
इस संप्रदाय के अनुसार निरंजन का अर्थ क्या होता है?
निरंजन एक परम तत्व है जो ना तो उत्पन्न होता है ना नष्ट होता है, यह एक भाव में लिप्त ना होकर पूरे ब्रह्मांड में फैला हुआ है, निरंजन अगर, अगोचर है इसका कोई आकार नहीं है और नित्य व अचल है।
घट घट में जिसकी माया का प्रचार है निरंजन ही परोक्ष रूप से समस्त सृष्टि का संचालन करता है और यह किसी अवतार के बंधन में भी नहीं बंधता है।
निरंजनी संप्रदाय का मेला कब और कहां लगता है?
- राजस्थान के नागौर जिले के डीडवाना के पास गाढा गांव में हर वर्ष फाल्गुन मास की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर द्वादशी तक इनका मेला लगता है।
- मेले में आने वाले भक्तों को हरिदास जी की जो गूदडी थी जिसे वो गले में पहनते थे उसके दर्शन करवाए जाते है।
निरंजनी संप्रदाय के बारे में
- इस संप्रदाय का नामकरण स्वामी निरंजन भगवान के नाम पर किया गया है।
- निरंजनी संप्रदाय में आपको ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का मिश्रण देखने को मिल जाएगा।
- इस संप्रदाय के मंदिरों में हरिपुरुष जी की वाणी का पाठ करते है और उनकी चरण पादुकाओं की पूजा की जाती है।
निरंजनी संप्रदाय में अनुयायियों के लिए नियम और परंपराएं
- इस संप्रदाय के विरक्त भक्तों को निहंग और गृहस्थ अनुयायियों को घरबारी कहा जाता है।
- घरबारी लोग रामानंदी तिलक लगाते है और मंदिरों में पूजा करते है।
- औरतें सफेद छींट का घाघरा पहनती है और मर्द धोती के नीच कोपिन पहनते है।
- निहंग लोग खाकी रंग की गूदडी अपने गले में डाले रखते है, और अपने साथ एक भिक्षावृत्ति के लिए पात्र रखते है जिससे ही जीवनयापन करते है।
- निरंजनी लोग शवों को जलाते तो है लेकिन सत्रहवीं करते है जो हिन्दू धर्म से थोड़ा अलग है।
निरंजनी संप्रदाय की साधना
निरंजनी संप्रदाय के प्रमुख 12 प्रचारकों के नाम
- लपट्यों जगन्नाथ
- श्यामदास
- कान्हड़दास
- ध्यानदास
- शेमदास
- नाथ
- जगजीवन
- तूरसीदास
- आनंददास
- पूरणदास
- मोहनदास
- हरिदास
निरंजनी संप्रदाय का इतिहास
इस संप्रदाय का उद्भव कब हुआ ऐसा पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं है क्योंकि निरंजन भगवान कब, कहां और किस काल में हुए यह भी अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है।
शुरुआत में इसका प्रचार प्रसार उड़ीसा राज्य में माना जाता है उसके बाद यह पश्चिम भारत की तरफ बढ़ता चला गया।
संत हरिदास निरंजनी के बारे में
- हरिदास निरंजनी जी संत बनने से पहले एक डकैत थे जिन्होंने कुटुंबियों के एक महात्मा से शिक्षा की और संत बने।
- कुटुंबियों के महात्मा ने उन्हें कहा कि ' जो हत्यालूट करेगा वहीं पाप का भागीदार होगा।'
- इसे सुनकर ही उन्होंने डकैती का मार्ग छोड़ा इसलिए इन्हें कलयुग का वाल्मीकि भी कहा जाता है।
- इनका समाधि स्थल गाढ़ा धाम नागौर में है।